الفتوحات المكية

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و هو عين خاتم النبيين بقوله تعالى ﴿وَ لٰكِنْ رَسُولَ اللّٰهِ وَ خٰاتَمَ النَّبِيِّينَ﴾ [الأحزاب:40] لما ادعى فيه أنه أبو زيد نفى اللّٰه تعالى عنه أن يكون أبا لأحد من رجالنا لرفع المناسبة و تمييز المرتبة أ لا تراه ﷺ ما عاش له ولد ذكر من ظهره تشرع تفأله لكونه سبق في علم اللّٰه أنه خاتم النبيين و «قال ﷺ إن الرسالة يعني البعثة إلى الناس بالتشريع لهم و النبوة قد انقطعت» أي ما بقي من يشرع له من عند اللّٰه حكم يكون عليه ليس هو شرعنا الذي جئنا به فلا رسول بعدي يأتي بشرع يخالف شرعي إلى الناس و لا نبي يكون على شرع ينفرد به من عند ربه يكون عليه فصرح أنه خاتم نبوة التشريع و لو أراد غير ما ذكرناه لكان معارضا «لقوله إن عيسى عليه السّلام ينزل فينا حكما مقسطا يؤمنا بنا» أي بالشرع الذي نحن عليه و لا نشك فيه أنه رسول و نبي فعلمنا أنه ﷺ أراد أنه لا شرع بعده ينسخ شرعه و دخل بهذا القول كل إنسان في العالم من زمان بعثته إلى يوم القيامة في أمته فالخضر و الياس و عيسى من أمة محمد ﷺ الظاهرة و من آدم إلى زمان بعثة رسول اللّٰه ﷺ من أمته الباطنة فهو النبي بالسابقة و هو النبي بالخاتمة فظهر في رسول اللّٰه ﷺ إن السابقة عين الخاتمة في النبوة و أما خاتمية عيسى عليه السّلام فله ختام دورة الملك فهو آخر رسول ظهر و ظهر بصورة آدم في نشئه حيث لم يكن عن أب بشري و لم يشبه الأبناء أعني ذرية آدم في النشء فإنه لم يلبث في البطن اللبث المعتاد فإنه لم ينتقل في أطوار النشأة الطبيعية بمرور الأزمان المعتادة بل كان انتقاله يشبه البعث أعني إحياء الموتى يوم القيامة في الزمان القليل على صورة من جاءوا عليها في الزمان الكثير فإنه داخل تحت عموم قوله ﴿كَمٰا بَدَأَكُمْ تَعُودُونَ﴾ [الأعراف:29]



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