الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

[البهائم مسخرة مذللة من اللّٰه للإنسان]

و اعلم أن البهائم و إن كانت مسخرة مذللة من اللّٰه للإنسان فلا تغفل عن كونك مسخرا لها بما تقوم به من النظر في مصالحها في سقيها و علفها و ما يصلح لها من تنظيف أماكنها و مباشرة القاذورات و الأزبال من أجلها و وقايتها من الحر و البرد المؤذيات لها فهذا و أمثاله من كون الحق سخرك لها و جعل في نفسك الحاجة إليها فإنها التي تحمل أثقالك إلى بلد لم تكن تبلغه إلا بنصف ذاتك و هو شق الأنفس : أي ما كنت تصل إليه إلا بالوهم و التخيل لا بالحس إلا بوساطة هذه المراكب فلا فضل لك عليها بالتسخير فإن اللّٰه أحوجك إليها أكثر مما أحوجها إليك «أ لا ترى إلى غضب رسول اللّٰه ﷺ حين سئل عن ضالة الإبل كيف قال ما لك و لها معها حذاؤها و سقاؤها ترد الماء و تأكل الشجر حتى يجدها ربها» فما جعل لها إليك حاجة و جعل فيك الحاجة إليها و جميع البهائم تفر منك ممن لها آلة الفرار و ما هذا إلا لاستغنائها عنك و ما جبلت عليه من العلم بأنك ضار لها ثم طلبك لها و بذل مجهودك في تحصيل شيء منها دليل على افتقارك إليها فبالله من تكون البهائم أغنى منه كيف يحصل في نفسه أنه أفضل منها صدق القائل ما هلك امرؤ عرف قدره فو الله ما يعرف الأمور إلا من شهدها ذوقا و عاينها كشفا

لا يعرف الشوق إلا من يكابده *** و لا الصبابة إلا من يعانيها

ما وصل إليك خبر الفيل و حبسه و امتناعه من القدوم على خراب بيت اللّٰه ما بلغك ما فعلت الطير بأصحاب الفيل و ما رمتهم به من الحجارة التي لها خاصية في القتل دون غيرها من الأحجار أ ترى يصدر ذلك منها من غير وحي إلهي إليها بذلك فكم من فيل كان في العالم و كم من أصحاب غزاة كانوا في العالم لما ظهر مثل هذا الأمر في هؤلاء و ما ظهر في غيرهم و هل يوحي اللّٰه إلى من لا يعقل عنه و هل قال تعالى



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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