الفتوحات المكية

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[الطلب سعاية و الرؤية امتنان]

و اعلم أنه كل ما ينال بسعاية فليس فيه امتنان و الطلب سعاية و الرؤية امتنان فلا يصح أن يطلب فإذا وقع ما وقع من الرؤية عن طلب فليست هي الرؤية على الحقيقة الحاصلة عن الطلب فإن مطلوبه من المرئي أن يراه إنما هو أن يراه على ما هو له و هو لا يتجلى له إلا في صورة علمه به لأنه إن لم يكن كذلك أنكره فما تجلى له إلا في غير ما طلب فكانت الرؤية إحسانا فإنه ما جاءه عين ما طلب و هو يتخيل أن ذلك عين ما طلب و ليس هو فإذا وقع له الالتذاذ بما رآه و تخيل أنه مطلوبه تجلى له بعد ذلك من غير طلب فكان ذلك التجلي أيضا امتنانا إلهيا أعطاه من العلم به ما لم يكن عنده و لا خطر على باله فإذا فهمت ما ذكرته لك علمت أن رؤية اللّٰه لا تكون بطلب و لا تنال جزاء كما تنال النعم بالجنان و هذه مسألة ما في علمي أن أحدا نبه عليها من خلق اللّٰه إلا اللّٰه مع أن رجال اللّٰه يعلمونها و ما نبهوا عليها لتخيلهم إن هذه المسألة قريبة المأخذ سهلة المتناول أو وقوعها من المحال لا بد من أحد الحكمين فإن اللّٰه ما سوى بين الخلق في العلم به فلا بد من التفاضل في ذلك بين عباد اللّٰه فإن المعتزلي يمنع الرؤية و الأشعري يجوزها عقلا و يثبتها شرعا في مقتضى نظره و الفيلسوف ينفيها عقلا إذ لا قدم له في الشرع و الايمان و أهل اللّٰه يثبتونها كشفا و ذوقا و لو كان قبل الكشف ما كان فإن الكشف يرده لما أعطاه ما يبقيه على ما كان عليه إلا إن كان ممن يقول بما جاء به أهل الكشف فإنه لا يتغير عليه الحال إلا بقدر ما بين العلم و رؤية المعلوم و اعلم أن اللّٰه من حيث نفسه له أحدية الأحد و من حيث أسماؤه له أحدية الكثرة ﴿إِنَّمَا اللّٰهُ إِلٰهٌ وٰاحِدٌ﴾ [النساء:171] و دليلي ﴿قُلْ هُوَ اللّٰهُ أَحَدٌ﴾ [الإخلاص:1]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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