الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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(وفق مخطوطة قونية)

بنعمه فيسلبها عنه و يعذبه على ذلك فليحترز الإنسان لنفسه في أي طريق يمشي فما بعد بيان اللّٰه بيان و قال موسى عليه السّلام لبني إسرائيل ﴿إِنْ تَكْفُرُوا أَنْتُمْ وَ مَنْ فِي الْأَرْضِ جَمِيعاً فَإِنَّ اللّٰهَ لَغَنِيٌّ حَمِيدٌ﴾ [ابراهيم:8] ينبه أن اللّٰه تعالى ما أوجد العالم إلا للعالم و ما تعبده بما تعبده به إلا ليعرفه بنفسه فإنه إذا عرف نفسه عرف ربه فيكون جزاؤه على علمه بربه أعظم الجزاء و لذلك قال ﴿إِلاّٰ لِيَعْبُدُونِ﴾ [الذاريات:56] و لا يعبدونه حتى يعرفوه فإذا عرفوه عبدوه عبادة ذاتية فإذا أمرهم عبدوه عبادة خاصة مع بقاء العبادة العامة الذاتية فجازاهم على ذلك فما خلقهم إلا لهم و لهذا قال تعالى عن نفسه إنه ﴿غَنِيٌّ عَنِ الْعٰالَمِينَ﴾ [آل عمران:97] و ما ذكر موسى الأرض إلا لكمالها بوجود كل شيء فيها و هو الإنسان الجامع حقائق العالم فقوله في الأرض لأنها الذلول فهي الحافظة مقام العبودة فكأنه قال إن تكفروا أنتم و كل عبد لله فإن اللّٰه غني عن العالمين و لذلك جعل اللّٰه الأرض محل الخلافة و منزلها فكأنه كنى أي إني جاعل في الأرض خليفة منهم لا يزول عن مقام عبوديته في نفسه أي لا يحجبه مرتبة الخلافة بالصفات التي أمره بها عن رتبته و لهذا جعلناه خليفة و لم نذكره بالإمامة لأن الخليفة يطلب بحكم هذا الاسم عليه من استخلفه فيعلم أنه مقهور محكوم عليه فما سماه إلا بما له فيه تذكرة لأنه مفطور على النسيان و السهو و الغفلة فيذكره اسم الخليفة لمن استخلفه فلو جعله إماما من غير أن يسميه خليفة مع الإمامة ربما اشتغل بإمامته عمن جعله إماما بخلاف خلافته لأن الإمامة ليست لها قوة التذكير في الخلافة فقال في الجماعة الكمل ﴿جَعَلَكُمْ خَلاٰئِفَ فِي الْأَرْضِ﴾ [فاطر:39]



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