الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فالقادح ما جاء بنور من عنده فالحق معنا أينما كنا في عدم أو وجود فبمعيته ظهرنا فنحن ذو نور و لا شعور لنا

فلله ما لله من عين كوننا *** و للكون ما للكون من نور ذاته

فنحن كثير و المهيمن واحد *** توحد في أسمائه و صفاته

و إنما قلنا نحن كثير و هو واحد لأن الأزند كثير و النار من كل زناد منها واحد العين فسواء كان الزناد حجرا أو شجرا و لهذا اختلفت المقالات في اللّٰه و المطلوب واحد فكل ما ظهر لكل طالب فليس إلا اللّٰه لا غيره فالكل منه بدأ و إليه يعود و إنما سمي طالب النار في الزناد قادحا لأن طلب الحق من الخلق ليعرف ذاته قدح في العلم الصحيح بذاته فإنه لا يعلم منه إلا المرتبة و هي كونه إلها واحدا خاصة فإن رام العلم بذاته و هي المشاهدة و لا تكون المشاهدة إلا عن تجليه و لا يكون ذلك إلا بالقدح فيه فإنك لا تراه إلا مقيدا قيده عقلك بنظره و تجلى لك في صورة تقييدك و هذا قدح فيما هو عليه في نفس الأمر و لو لا ما أنت في نفسك ذو نور عقلي ما عرفته و ذو نور بصري ما شهدته فما شهدته إلا بالنور و ما ثم نور إلا هو فما شهدته و لا عرفته إلا به فهو نور السموات من حيث العقول و الأرض من حيث الأبصار و ما جعل اللّٰه عزَّ وجلَّ صفة نوره إلا بالنور الذي هو المصباح و هو نور أرضي لا سماوي فشبه نوره بالمصباح و رؤيتنا إياه كرؤيتنا الشمس و القمر أي و إن كان كالمصباح فإنه يعلو في الرؤية و الإدراك عن رؤية المصباح فهو بنفسه أرضى لأنه لو لا نزوله إلينا ما عرفناه و هو بالرؤية سماوي فانظر ما أحكم علم الشارع بالله أين هو من نظر العقل و لهذا قال ﴿لاٰ تُدْرِكُهُ الْأَبْصٰارُ﴾ [الأنعام:103] لأنه نور و النور لا يدرك إلا بالنور فلا يدرك إلا به ﴿وَ هُوَ يُدْرِكُ الْأَبْصٰارَ﴾ [الأنعام:103] لأنه نور



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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