الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 7788 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿ثُلَّةٌ مِنَ الْأَوَّلِينَ﴾ [الواقعة:13] ﴿ثُلَّةٌ مِنَ الْآخِرِينَ﴾ [الواقعة:40] بحذف واو العطف و لم يكن عندي من ذلك سر قبل هذا فرددت عليها لتقرأ ذلك بحرف الواو فلم تفعل فرجعت إلى نفسي و علمت ما نبهني الحق به في ذلك الحذف من الاقتطاع بين العالم فإذ جاء بالواو راعى ما يقع فيه الاشتراك في الصورة الظاهرة و المفهوم الأول و إذا أزال الواو راعى ما يقع به التمييز و الانفراد الذي به حقيقة ذلك الشيء لأنه لا حقيقة له إلا بما يتميز به فعلمت ما أراد بحذف الواو من نطقها بذلك و هو اللّٰه ليعلم أنه ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ﴾ [الشورى:11] مع وجود الأشياء و أنه بعدمها و وجودها منفي المماثلة و ما بقي الأمر الأهل هو منفي المناسبة أم لا لأن الإيجاد بغير المناسبة لا يتصور و قد حصل الإيجاد و ظهر المخلوق فعلمنا إن المناسب لا بد منه و لا يعطي المماثلة أصلا لأن الخلق كله لله و الأمر كله لله فلا شركة فارتفعت المماثلة مع وجود المناسب الذي يطلبه الحق بذاته و كل خلق أضيف إلى خلق فمجاز و صورة حجابية ليعلم العالم من الجاهل و فضل الخلق بعضهم على بعض ليتحقق الشكر من الفاضل و الطلب و الافتقار من المفضول فيزاد الفاضل لشكره و يعطي المفضول لطلبه فكل في مزيد و لا يرتفع التفاضل كلما ارتقى الفاضل بالمزيد درجة ارتقى المفضول خلفه يطلبه درجة فالكل في ارتقاء من غير لحوق

ناداني الحق من وجودي *** في كل حال على الشهود

امتلأت ذاتكم فقلنا *** ملا محال

﴿هَلْ مِنْ مَزِيدٍ﴾ [ق:30]

ما يملأ الكون غير من قد *** جاد على الخلق بالوجود

و ذلك الحق لا سواه *** ما رتبة الرب كالعبيد

من علم الحق علم ذوق *** لم يدر ما لذة السجود



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!