الفتوحات المكية

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و ما هو إلا كلام اللّٰه المنعوت بالقدم فحدث عندهم حين سمعوه فهو محدث بالإتيان قديم بالعين و جاء في مواد حادثة ما وقع السمع و لا تعلق إلا بها و تعلق الفهم بما دلت عليه هذه الأخبار و الذي دلت عليه منه ما هو موصوف بالقدم و منه ما هو موصوف بالحدوث فله الحدوث من وجه و القدم من وجه و لذلك قال من قال إن الحق يسمع بما به يبصر بما به يتكلم و العين واحدة و الأحكام تختلف قال تعالى ﴿إِنْ يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ﴾ [النساء:133] فعلق الذهاب بالمشيئة و قال ﴿وَ إِنّٰا عَلىٰ ذَهٰابٍ بِهِ لَقٰادِرُونَ﴾ [المؤمنون:18] فعلق الذهاب بالاقتدار فما به قدرته أراد و شاء

[أن متعلق القدرة الإيجاد لا الإعدام]

و هنا علم شريف و هو أن متعلق القدرة الإيجاد لا الإعدام فيتعرض هنا أمران الأمر الواحد أن الذهاب المراد هنا ليس الإعدام و إنما هو انتقال من حال إلى حال فمتعلق القدرة ظهور المحكوم عليه بالحال التي انتقل إليها فأوجدت القدرة له ذلك الحال فما تعلقت إلا بالإيجاد و الأمر الآخر إن وصفه بالاقتدار على الذهاب أي لا مكره له على إبقائه في الوجود فإن وجود عين القائم بنفسه أعني بقاءه إنما هو مشروط بشرط بوجود ذلك الشرط يبقى الوجود عليه و ذلك الشرط يمده اللّٰه به في كل زمان و له أن يمنع وجود ذلك الشرط و لا بقاء للمشروط إلا به فلم يوجد الشرط فانعدم المشروط و هذا الإمساك ليس من متعلق القدرة و قد وصف نفسه بالقدرة على ذلك فلم يبق إلا فرض المنازع الذي يريد بقاءه فهو قادر على دفعه لما لم يرد اللّٰه بقاءه فيقهر المنازع فلا يبقى ما أراد المنازع بقاءه و القهر حكم من أحكام الاقتدار و لما علمنا هذا و تقرر لدينا علمنا من تقدم و حكمه و من تأخر و حكمه كما قدمنا إن الشيء يكون متقدما من وجه متأخرا من وجه و في هذا المنزل من العلوم علم المثلثات الواقعة في الوجود و من أين أصلها و ما يتصل منها و ما ينفصل و فيه علم مناسبة القرآن للكتاب و كون التوراة و غيرها كتابا و ليست بقرآن و فيه علم تقليل النظير في المحمود و المذموم و فيه علم حكمة السبب في وجود ما لا يوجد إلا بسبب هل يجوز وجوده بغير سبب أم لا عقلا و فيه علم تهيؤ القوابل بذاتها لما يرد عليها مما تقبله و فيه ترك الإهمال من ترك ما يترك لمنفعة و كله ترك و فيه علم تأخير الوعيد ممن لا مانع له فهل ذلك لمانع لا يمكن رفعه أو هل هو عن اختيار إن صح وجود الإنسان في العالم فإنه ليس له مستند وجودي في الحق و إنما هو أمر متوهم ذكرناه في الباب الذي يليه هذا الباب فقد تقدم و فيه علم الآجال في الأشياء و الترتيب في الإيجاد مع تهيؤ الممكنات لقبول الإيجاد فما الذي أخرها و الفيض الإلهي غير ممنوع و القوابل مهياة للقبول و التأخير و التقديم مشهود فلما ذا يرجع فلا بد في هذا الموطن من حكم يسمى المشيئة و لا بد و لا يمكن رفع هذا الحكم بوجه من الوجوه و فيه علم ما ستر عن العالم أن يعلمه هل ينقسم إلى ما لا يزال مستورا عنه فلا يعلمه أبدا و إلى ما يعلمه برفع الستور و هل علم ما لا يرفع ستره ممكن أن يعلم لو رفع الستر أو ستره عينه فلا يمكن أن يعلم لذاته و فيه علم سبب طلب البينة من المدعي اسم فاعل و قبول الطالب لذلك شهادة البينة من غير حكم الحاكم و لا يكون ذلك حتى يتذكر المدعي عليه بشهادة البينة فهل قبوله شهادتهم للذكرى أم لأمر آخر و هو عدم التهمة لهم فيما شهدوا به و جوزوا النسيان منه لما شهدوا به عليه و ذلك لإنصافهم و فيه علم تأخير البيان عند الحاجة مع التمكن منه لا يجوز و فيه علم إقامة الجماعة مقام الواحد و إقامة الواحد مقام الجماعة و فيه علم رد الدلائل للأغراض النفسية هل يكون ردها عن خلل عنده في كون تلك الدلائل كما هي في نفسها صحيحة أو لا عن خلل و فيه علم من حفظ من العالم و بما ذا حفظ و ممن حفظ و لما ذا حفظ و فيه علم ما تحوي عليه الأرض من الكنوز و ما يظهر عليها مما يخرج منها أنه على حد معلوم لا يقبل الزيادة و النقص و فيه علم رزق العالم بعضه بعضا و فيه علم ترك الادخار من صفة أهل اللّٰه الذاكرين منهم و فيه علم نشء الحيوان على اختلاف أنواعه و فيما ذا يشترك و بما ذا يتميز صنف عن صنف و فيه علم التعريف الإلهي من شاء اللّٰه من عباده و فيه علم سبب سجود الملائكة لآدم إنما كان لأجل الصورة لا لأن علمهم الأسماء فأمروا بالسجود قبل أن يعرفوا فضله عليهم بما علمه اللّٰه من الأسماء و لو كان السجود بعد ظهوره بالعلم ما أبى إبليس و لا قال ﴿أَنَا خَيْرٌ مِنْهُ﴾ [الأعراف:12]



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