الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 7314 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فإذا علمت هذا فلنقل ما تجاوز فيه الناس من مسمى النور و الظلمة المعروفين في العرف ظاهرا كالأنوار المنسوبة إلى البروق و الكواكب و السرج و أمثال ذلك و الظلم المشهودة المعلومة المدركة ظاهرا للحس و أنوار الباطن المعنوية كنور العقل و نور الايمان و نور العلم و ظلمة الباطن كظلمة الجهل و الشرك و عدم العقل و الذي ليس بظلمة و لا نور كالشك و الظن و الحيرة و النظر فهذا أيضا ليس بظلمة و لا نور فهذه مجازاة حقائق الواجب و المحال و الممكن في عرف الممكنات فقد جمع الممكن بنفسه حقيقته و حقيقة طرفيه و أبين ما يكون ذلك في الممكن ما فيه من المعاني و المحسوسات و الخيالات و هذا المجموع لا يوجد حكمه إلا في الممكن لا في الطرفين أصلا فالعلم بالممكن هو بحر العلم الواسع العظيم الأمواج الذي تغرق فيه السفن و هو بحر لا ساحل له إلا طرفيه و لا يتخيل في طرفيه ما تتخيله العقول القاصرة عن إدراك هذا العلم كاليمين و الشمال لما بينهما ليس هذا الأمر كذلك بل إن كان و لا بد من التخيل فلتتخيل ما هو الأقرب بالنسبة لما ذكرناه أن الشأن في نفسه كالنقطة من المحيط و ما بينهما فالنقطة الحق و الفراغ الخارج عن المحيط العدم أو قل الظلمة و ما بين النقطة و الفراغ الخارج عن المحيط الممكن كما رسمناه مثالا في الهامش و إنما أعطينا النقطة لأنها أصل وجود محيط الدائرة و بالنقطة ظهرت كذلك ما ظهر الممكن إلا بالحق و المحيط من الدائرة إذا فرضت خطوطا من النقطة إلى المحيط لا تنتهي إلا إلى نقطة فالمحيط كله بهذه المثابة من النقطة و هو قوله ﴿وَ اللّٰهُ مِنْ وَرٰائِهِمْ مُحِيطٌ﴾ [البروج:20] و قوله ﴿إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُحِيطٌ﴾ [فصلت:54]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!