الفتوحات المكية

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﴿مٰا زٰادَهُمْ إِلاّٰ نُفُوراً اِسْتِكْبٰاراً فِي الْأَرْضِ﴾ فلا تغالط نفسك و انظر فيما دعيت إليه فإن كان حقا و لو كان من شيطان فاقبله فإنك إنما تقبل الحق و لا تبال من جاء به هذا مطلب الرجال الذين يعرفون الأشياء بالحق ما يعرفون الحق بالأشياء و أصحاب هذا الوصف هم العارفون بالموازين الإلهية المعرفة التامة و هم قليلون في العالم إلى وقتي هذا ما رأيت منهم واحدا و إن كنت رأيته فما رأيته في حال تصرفه في هذا المقام و هم حكماء هذا الطريق ناطقون بالله عن اللّٰه ما أمرهم به اللّٰه

فلله من خلقه طائفة *** عليه قلوب لها عاكفة

و ليست لهم في الذي قد دعا *** من أحوالهم صفة صارفة

إذا ما دعاها بأنفاسها *** يراها على بابه واقفه

تبادر للأمر من كونها *** بمن قد دعاها له عارفة

«وصل»إذا أضيف حكم من أحكام الوجود إلى غير اللّٰه

أنكره أهل الشهود خاصة و هم الذين لا يشهدون شيئا و لا يرونه إلا رأوا اللّٰه قبله كما قال الصديق عن نفسه و أما العلماء فهم في هذا المقام على حكم الحق فيه لا على ما يشهدونه فينكرون النكرة و يعرفون المعرفة إذ كان الوجود مبناه على المعرفة و هو الأصل فلما جاءت الأمثال و الأشباه ظهر التنكير فافتقرنا إلى البدل و النعت و عطف البيان و لو لا الأمثال و حصول التنكير ما احتجنا إلى شيء و ليست الحدود الذاتية للأشياء تقوى قوة النعوت فإن الحدود الذاتية مثلا للإنسان بما هو إنسان لا تميز زيدا عن عمرو فلا بد من زيادة يقع بها تعريف هذا التنكير لو قلت جاءني إنسان لم يعرف من هو حتى تقول فلان فإن كان في حضرة التنكير نعته أو أبدلت منه أو عرفته بعطف البيان حتى تقيمه في حضرة التعريف ليعرف المخبر به من أردت و هذا مقام لم يتحقق به أحد مثل الملامية من أهل اللّٰه و هم سادات هذا الطريق و من الناس من ينكر على الحق لا على جهة الاعتراض عليه و إنما يطلب بذلك أن يعلم ما هو الأمر عليه الذي جهله بالتعريف الإلهي الذي ﴿لاٰ يَأْتِيهِ الْبٰاطِلُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَ لاٰ مِنْ خَلْفِهِ تَنْزِيلٌ مِنْ حَكِيمٍ حَمِيدٍ﴾ [فصلت:42] على



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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