الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و هي الأسباب التي أوجدك اللّٰه عندها لتنسبها إليه سبحانه و يكون لها عليك فضل التقدم بالوجود خاصة لا فضل التأثير لأنه في الحقيقة لا أثر لها و إن كانت أسبابا لوجود الآثار فبهذا القدر صح لها الفضل و طلب منك الشكر و أنزلها الحق لك و عندك منزلته في التقدم عليك لا في الأثر ليكون الثناء بالتقدم و التأثير لله تعالى و بالتقدم و التوقف للوالدين و لكن على ما شرطناه فلا تشرك بعبادة ربك أحدا : فإذا أثنيت على اللّٰه تعالى و قلت ربنا و رب آبائنا العلويات و أمهاتنا السفليات فلا فرق بين أن أقولها أنا أو يقولها جميع بنى آدم من البشر فلم يخاطب شخصا بعينه حتى يسوق آباءه و أمهاته من آدم و حواء إلى زمانه و إنما القصد هذا النشء الإنساني فكنت مترجما عن كل مولود بهذا التحميد من عالم الأركان و عالم الطبيعة و الإنسان ثم ترتقي في النيابة عن كل مولد بين مؤثر و مؤثر فيه فتحمده بكل لسان و تتوجه إليه بكل وجه فيكون الجزاء لنا من عند اللّٰه من ذلك المقام الكلي

[السلام التام على جميع الأنام]

كما قال لي بعض مشيختي إذا قلت السلام علينا و على عباد اللّٰه الصالحين أو قلت السلام عليكم إذا سلمت في طريقك على أحد فاحضر في قلبك كل صالح لله من عباده في الأرض و السماء و ميت و حي فإنه من ذلك المقام يرد عليك فلا يبقى ملك مقرب و لا روح مطهر يبلغه سلامك إلا و يرد عليك و هو دعاء فيستجاب فيك فتفلح و من لم يبلغه سلامك من عباد اللّٰه المهيمين في جلاله المشتغلين به المستفرغين فيه و أنت قد سلمت عليهم بهذا الشمول فإن اللّٰه ينوب عنهم في الرد عليك و كفى بهذا شرفا في حقك حيث يسلم عليك الحق فليته لم تسمع أحدا ممن سلمت عليه حتى ينوب عن الجميع في الرد عليك فإنه بك أشرف قال تعالى تشريفا في حق يحيى ع ﴿وَ سَلاٰمٌ عَلَيْهِ يَوْمَ وُلِدَ وَ يَوْمَ يَمُوتُ وَ يَوْمَ يُبْعَثُ حَيًّا﴾ [مريم:15]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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