الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 5278 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿لاٰ تَحْزَنْ إِنَّ اللّٰهَ مَعَنٰا﴾ [التوبة:40] فقام النبي صلى اللّٰه عليه و سلم في هذا الإخبار مقام الحق في معيته لموسى و هارون و ناب منابه هكذا تكون العناية الإلهية فهذا هو النور الذي يسعى به و هو لا يزال ساعيا فلا يزال الحق معه حافظا و ناصرا لا خاذلا و لهذا وقع الإخبار لنا من اللّٰه على لسان رسوله صلى اللّٰه عليه و سلم أنا إذا أتينا بنوافل الخيرات لا بفرائضها أحبنا الحق فكان سمعنا الذي نسمع به و رجلنا التي نسعى بها إلى جميع قوانا و أعضائنا فهذا ما أعطت النوافل فينا من الحق فأين أنت مما تعطيه الفرائض فكم بين عبودية الاضطرار و عبودية الاختيار تقع المشاركة مع الحق في عبودة الاختيار في أحاديث نزوله في الخطاب إلى عبده مثل الشوق و الجوع و العطش و المرض و أشباه ذلك و عبودة الاضطرار لا تقع فيها مشاركة فهي مخلصة للعبد فمن أقيم فيها فلا مقام فوقها يقول اللّٰه لأبي يزيد تقرب إلي بما ليس لي الذلة و الافتقار فعين القربة هنا هو عين البعد من المقام فافهم و أما النور الذي نسعى منه فهو نور الحقيقة سواء علمها أو لم يعلمها فيكشفها بهذا النور و يكشف أنه سعى منه ثم ينكشف له النور الذي يسعى إليه و هو الشريعة فصاحب هذا المقام هو المعصوم المحفوظ المعتنى به العالم الذي لا يجهل لاتصافه بالعلم الذي لا جهل فيه فإن ثم عبيدا يسعون من نور الشريعة إلى نور الحقيقة و يخاف عليهم و هؤلاء الذين يسعون على كشف من نور الحقيقة إلى نور الشريعة آمنون من هذا المكر الإلهي فهم على بصيرة من أمرهم و هؤلائك تحت خطر عظيم يمكن أن يعصموا فيه و يمكن أن يخذلوا فاعلم ذلك و أما أنوار المولدات فهي أنوار تعطيه بذاتها علما صحيحا من العلم بالله يكشف بها نسبة الحق و صورته في صور أعيان المعادن و النبات و الحيوان و هم لا يعلمون و ما زاد الإنسان على هؤلاء إلا بكشفه ذلك فالمولدات في هذا المقام بمنزلة قوله ﴿وَ هُوَ مَعَكُمْ أَيْنَ مٰا كُنْتُمْ﴾ [الحديد:4] و الإنسان فيه بمنزلة



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!