الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 5016 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا الْحُسْنىٰ وَ زِيٰادَةٌ﴾ [يونس:26] و الزيادة حيث وقعت من الخير و الشر و لا تعقل الزيادة إلا بعد عقل الأصل فإذا علم مقداره علم الزائد لئلا يتخيل في الزائد أنه أصل فأقل الزيادة مثل الأصل إلى رابع درجة و ليس فوقها زيادة و كل زيادة زائدة على الزيادة مثل الأصل سواء مثاله الأصل وجود عين العقل و الزائد وجود النفس و هو على قدر العقل ثم الطبيعة و هي على قدر العقل ثم الهباء و هو على مقدار العقل ثم الجسم الكل و هو الرابع و ليس وراءه شيء إلا الصور و كذلك المد الطبيعي بمنزلة العقل مثل مد الألف من قال و شبهه فهذا سار في كل موجود فإن له من الحق إمدادا به بقاؤه فما زاد على ما به بقاؤه و ظهور عينه فلسبب آخر و لما كان العقل أول موجود جعل سببا لكل إمداد إلهي في الوجود كذلك الهمزة في النفس الإنساني أوجبت الإمداد في الصوت سواء تأخرت أو تقدمت و تنتهي الزيادة في ذلك على المد الطبيعي إلى أربع مراتب كل زيادة على قدر الأصل التي هي الألف الطبيعية في كل ممدود مثال ذلك أامن في قراءة أبي عمرو و أاامن في قراءة ابن عامر و الكسائي و أااامن في قراءة عاصم و أاااامن في قراءة ورش و حمزة و كذلك جاء و جااء و جاااء و جااااء على ما ذكرناه فهذا الإمداد الإلهي قبل الموجب له و بعده هو بحسب المعرفة بالله فمن لم يعرف اللّٰه بدليل العالم عليه كان الإمداد متقدما على العلم بالله من حيث لا يعلم العبد فهو يتقلب في نعمة اللّٰه و لا علم له بالمنعم من هو على التعيين و من عرف العالم بالله كان الإمداد متأخرا لأنه علم اللّٰه فرآه قبل إمداده و إن كان علمه به من إمداده و لكن ذلك هو المد الطبيعي فالإمداد في النفس الرحماني إيجاد النعم على التضعيف بالزيادة منها



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!