الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فقدم المغفرة على الذنب و ليس يذنب عنده و إنما ذكره لتعرف العناية الإلهية بإحبابه لا ذنب لمحبوب و لا حسنة لمحب عند نفسه و مع هذا كله فإنه مقام خفي غير جلي سريع التفلت في المحب يتصور فيه المطالبة مع الأنفاس مدعية حافظ لميزانه إن أخل به قامت الحجة عليه من الجانبين فلا يحفظه إلا ذو معرفة تامة و ذو حب صادق قوي السلطان ثابت الحكم

(منصة و مجلى)نعت
المحب بأنه غير مطلوب بالآداب

إنما يطلب بالأدب من كان له عقل و صاحب الحب ولهان مدله العقل لا تدبير له فهو غير مؤاخذ في كل ما يصدر عنه إذا كان المحب اللّٰه فهو الكبير المالك مشرع الآداب في العقلاء مؤدب أوليائه كما «قال ﷺ إن اللّٰه أدبني فأحسن أدبي» و السيد لا يقال يتأدب مع غلامه و إنما يقال السيد يعطي ما يستحقه العبد المحبوب عنده المكرم لديه منة منه و فضلا فالسيد غير مطالب بالأدب مع عبده و إن كان محبوبا له

(منصة
و مجلى)نعت المحب بأنه ناس حظه و حظ محبوبه استفرغه الحب فأنساه المحبوب و أنساه نفسه

و هذا هو حب الحب و الحقيقة الإلهية التي صدرت منها هذه الحقيقة لا تنقال نعم تنقال إلا أنها من الأسرار التي لا تذاع فمن كشفها عرفها و لا يجوز له أن يعرف بها و آيتها من كتاب اللّٰه ﴿نَسُوا اللّٰهَ فَنَسِيَهُمْ﴾ [التوبة:67] و من نسي صورته نسي نفسه

(منصة و مجلى)
نعت المحب بأنه مخلوع النعوت

المحب لا نعت له يقيد به و لا صفة فإنه بحيث يريد محبوبه أن يقيمه فيه فنعته ما يراد به و ما يراد به لا يعرفه فهو مخلوع النعوت المحب اللّٰه هو كامل لذاته لا يكمل بالزائد فلا نعت له و لا صفة لأنه ﴿لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ﴾ [الشورى:11] ف‌ ﴿سُبْحٰانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمّٰا يَصِفُونَ﴾ [الصافات:180]



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