الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فهذا في غاية البيان من كتاب اللّٰه محو في إثبات فالمحب ما له تصرف إلا فيما يصرف فيه قد حبره حبه الآن يريد سوى ما يريده به و الحقيقة في نفس الأمر تأبى إلا ذلك و كل ما يجري منه فهو خلق لله و هو مفعول به لا فاعل فهو محل جريان الأمور عليه فهو محو في إثبات المحب اللّٰه محو في إثبات لا تقع العين إلا على فعل العبد فهذا محو الحق و لا يعطي الدليل العقلي و الكشف إلا وجود الحق لا وجود العبد و لا الكون فهذا إثبات الحق فهو محو في عالم الشهادة إثبات في حضرة الشهود

(منصة و مجلى)نعت المحب
بأنه قد وطأ نفسه لما يريده به محبوبه

و ذلك أن الحب لما حال بينه و بين رؤية الأسباب و لم يبق له نظر إلا إلى جناب محبوبه تعالى جهل ما يحتاج العالم إليه فيه و لا بد له في نفس الأمر أن يؤدي إليه ما يطلبه به من حقوقه كما «قال ﷺ و لزورك عليك حق» فأتى بما يدخل فيه جميع العالم و هو الزيارة و هذا من جوامع كلمه فوطأ هذا المحب نفسه لما يريده به محبوبه فعلم ما للعالم من الحقوق عليه من جهة ما أراده به محبوبه من تصريفه فيما صرفه و الحق حكيم فلا يحركه إلا في العمل الخاص و أداء الحق الخاص فيما يطلبه به من كان من العالم في ذلك الوقت فيعرف العالم من اللّٰه فيربح شهود الحق و هو قول الصديق ما رأيت شيئا إلا رأيت اللّٰه قبله فشاهد عين العالم في شهود اللّٰه المحب اللّٰه لما كان في نفس الأمر أن الحق سبحانه لا تقبل ذاته التصريف فيها و جعل في نفوس العالم الافتقار إليه فيما فيه بقاؤهم و مصالحهم و تمشية أغراضهم فكأنه قد وطأ نفسه لجميع ما يريدونه منه و ما يريدونه به و لهذا إذا سألوه فيما لم يجيء وقته قال لهم ﴿سَنَفْرُغُ لَكُمْ﴾ [الرحمن:31]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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