الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

للتابع حصل لصاحب النظر فما يزداد صاحب النظر إلا غما على غم و ما يصدق متى ينقضي سفره و يرجع إلى بدنه فإنهم في هذا السفر مثل النائم فيما يرى في نومه و هو يعرف أنه في النوم فلا يصدق متى يستيقظ ليستأنف العمل و يستريح من غمه و إنما يتقلق خوفا مما حصل له في سفره أن يقبض فيه فلا يصح له ترق بعد ذلك فهذا هو الذي يزعجه و التابع ليس كذلك فإنه يرى الترقي بصحبه حيث كان من ذلك الوجه الخاص الذي لا يعرفه إلا صاحب هذا الوجه فإذا أقاما في هذه السماء ما شاء اللّٰه و أخذا في الرحلة و ودع كل واحد منهما نزيله و ارتقيا في معراج الأرواح إلى السماء الثانية و في هذه السماء الأولى هو النائب السابع الإلهي الموكل بالنطفة الكائنة في الأرحام التي تظهر فيها هذه النشأة الإنسانية و هو يتوكل بها في الشهر السابع من سقوط النطفة و الطفل في هذا الشهر الجنين يزيد و ينمو في بطن أمه بزيادة القمر و يذبل و تقل حركته في بطن أمه في نقص القمر و ذلك هو العلامة فإن ولد في هذا الشهر لم يكن في القوة مثل الذي يولد في الشهر السادس فإذا فرعا السماء الثانية و فتحت لهما صعدا فنزل التابع عند عيسى عليه السّلام و عنده يحيى ابن خالته و نزل صاحب النظر عند الكاتب فلما أنزله الكاتب عنده و أكرم مثواه اعتذر إليه و قال له لا تستبطئني فإني في خدمة عيسى و يحيى عليه السّلام و قد نزل بهما صاحبك فلا بد لي من الوقوف عندهما حتى أرى ما يأمراني به في حق نزيلهما فإذا فرغت من شأنه رجعت إليك فيزيد صاحب النظر غما إلى غمه و ندامة حيث لم يسلك مسلك صاحبه و لا ذهب في مذهبه فأقام التابع عند ابني الخالة ما شاء اللّٰه فأوقفاه على صحة رسالة المعلم رسول اللّٰه ﷺ بدلالة إعجاز القرآن فإنها حضرة الخطابة و الأوزان و حسن مواقع الكلام و امتزاج الأمور و ظهور المعنى الواحد في الصور الكثيرة و يحصل له الفرقان في مرتبة خرق العوائد

[علم السيمياء]



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