الفتوحات المكية

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و اعلم أنه قد يكون الحب طبيعيا و المحبوب ليس من عالم الطبيعة و لا يكون الحب طبيعيا إلا إذا كان المحب من عالم الطبيعة لا بد من ذلك و ذلك أن الحب الطبيعي سببه نظرة أو سماع فيحدث في خيال الناظر مما رآه إن كان المحبوب ممن يدرك بالبصر و في خيال السامع مما سمع فحمله في نشأته فصوره في خياله بالقوة المصورة و قد يكون المحبوب ذا صورة طبيعية مطابقة لما تصور في الخيال أو دون ذلك أو فوق ذلك و قد لا يكون للمحبوب صورة و لا يجوز أن يقبل الصور فصور هذا المحب من السماع ما لا يمكن أن يتصور و لم يكن مقصود الطبيعة في تصوير ما لا يقبل الصورة إلا اجتماعها على أمر محصور ينضبط لها مخافة التبديد و التعلق بما ليس في اليد منه شيء فهذا هو الداعي لما ذكرناه من تصوير من ليس بصورة أو من تصوير من لم يشهد له صورة و إن كان ذا صورة و فعل الحب في هذه الصورة أن يعظم شخصها حتى يضيق محل الخيال عنها فيما يخيل إليه فتثمر تلك العظمة و الكبر التي في تلك الصورة نحو لا في بدن المحب فلهذا تنحل أجساد المحبين فإن مواد الغذاء تنصرف إليها فتعظم و تقل عن البدن فينحل فإن حرقة الشوق تحرقه فلا يبقى للبدن ما يتغذى به و في ذلك الاحتراق نمو صورة المحبوب في الخيال فإن ذلك أكلها ثم إن القوة المصورة تكسو تلك الصورة في الخيال حسنا فائقا و جمالا رائقا يتغير لذلك الحسن صورة المحب الظاهرة فيصفر لونه و تذبل شفته و تغور عينه ثم إن تلك القوة تكسو تلك الصورة قوة عظيمة تأخذها من قوة بدن المحب فيصبح المحب ضعيف القوي ترعد فرائصه ثم إن قوة الحب في المحب تجعله يحب لقاء محبوبه و يجبن عند لقائه لأنه لا يرى في نفسه قوة للقائه و لهذا يغشى على المحب إذا لقي المحبوب و يصعق و من فيه فضلة و حبه ناقص يعتريه عند لقاء محبوبه ارتعاد و خبلان كما قال بعضهم

أفكر ما أقول إذا افترقنا *** و أحكم دائبا حجج المقال

فأنساها إذا نحن التقينا *** و أنطق حين أنطق بالمحال

ثم إن قوة الحب الطبيعي تشجع المحب بين يدي محبوبه له لا عليه فالمحب جبان شجاع مقدام فلا يزال هذا حاله ما دامت تلك الصورة موجودة في خياله إلى أن يموت و ينحل نظامه أو تزول عن خياله فيسلو و من الحب الطبيعي أن تلتبس تلك الصورة في خياله فتلصق بصورة نفسه المتخيلة له و إذا تقاربت الصورتان في خياله تقاربا مفرطا و تلتصق به لصوق الهواء بالناظر يطلبه المحب في خياله فلا يتصوره و يضيع و لا ينضبط له للقرب المفرط فيأخذه لذلك خبال و حيرة مثل ما يأخذ من فقد محبوبه و هذا هو الاشتياق و الشوق من البعد و الاشتياق من القرب المفرط كان قيس ليلى في هذا المقام حيث كان يصيح ليلى ليلى في كل ما يكلم به فإنه كان يتخيل أنه فقيد لها و لم يكن و إنما قرب الصورة المتخيلة أفرطت في القرب فلم يشاهدها فكان يطلبها طلب الفاقد أ لا تراه حين جاءته من خارج فلم تطابق صورتها الظاهرة الصورة الباطنة المتخيلة التي مسكها في خياله منها فرآها كأنها مزاحمة لتلك الصورة فخاف فقدها فقال لها إليك عني فإن حبك شغلني عنك يريد أن تلك الصورة هي عين الحب فبقي يطلبها ليلى ليلى فإذا تقوت تلك الصورة في خيال المحب أثرت في المحبوب تأثير الخيال في الحس مثل الذي يتوهم السقوط فيسقط أو يتوهم أمرا ما مفزعا فيتغير له المزاج فتتغير صورة حسه كذلك هذه الصورة إذا تقوت أثرت في المحبوب فقيدته و صيرته أشد طلبا لها منها له فإن النفوس قد جبلت على حب الرئاسة و المحب عبد مملوك بحبه لهذا المحبوب فالمحبوب لا يكون له رياسة إلا بوجود هذا المحب فيعشقه على قدر عشقه رياسته و إنما يتيه عليه للطمأنينة الحاصلة في نفس المحبوب بأن المحب لا يصبر عنه و هو طالب إياه فتأخذه العزة ظاهرا و هو الطالب له باطنا و لا يرى في الوجود أحدا مثله لكونه ملكه فالمحب لا يعلل فعل المحبوب لأن التعليل من صفات العقل و لا عقل للمحب يقول بعضهم

و لا خير في حب يدبر بالعقل



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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