الفتوحات المكية

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﴿يٰا نِسٰاءَ النَّبِيِّ مَنْ يَأْتِ مِنْكُنَّ بِفٰاحِشَةٍ مُبَيِّنَةٍ يُضٰاعَفْ لَهَا الْعَذٰابُ ضِعْفَيْنِ﴾ [الأحزاب:30] لمكانة رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم و لفعل الفاحشة كذلك ضوعف الأجر للعمل الصالح و مكانة رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم و بقي القنوت معرى عن الأجر فإنه أعظم من الأجر فإنه ليس بتكليف و إنما الحقيقة تطلبه و هو حال يستصحب العبد في الدنيا و الآخرة و لهذا قال ﴿إِنْ كُلُّ مَنْ فِي السَّمٰاوٰاتِ وَ الْأَرْضِ إِلاّٰ آتِي الرَّحْمٰنِ عَبْداً﴾ [مريم:93] يعني يوم القيامة فالقنوت مع العبودية في دار التكليف لا مع الأجر ذلك هو القنوت المطلوب و الحق إنما ينظر للعبد في طاعته بعين باعثه على تلك الطاعة و لهذا قال تعالى آمرا ﴿وَ قُومُوا لِلّٰهِ قٰانِتِينَ﴾ [البقرة:238] و لم يسم أجرا و لا جعل القنوت إلا من أجله لا من أجل أمر آخر فهؤلاء هم القانتون و القانتات

[الأولياء الصادقون]

و من الأولياء أيضا الصادقون و الصادقات رضي اللّٰه عنهم تولاهم اللّٰه بالصدق في أقوالهم و أحوالهم فقال تعالى ﴿رِجٰالٌ صَدَقُوا مٰا عٰاهَدُوا اللّٰهَ عَلَيْهِ﴾ [الأحزاب:23] فهذا من صدق أحوالهم و الصدق في القول معلوم و هو ما يخبر به و صدق الحال ما يفي به في المستأنف و هو أقصى الغاية في الوفاء لأنه شديد على النفس فلا يقع الوفاء به في الحال و القول إلا من الأشداء الأقوياء و لا سيما في القول فإنك لو حكيت كلاما عن أحد كان بالفاء فجعلت بدله واوا لم تكن من هذه الطائفة فانظر أغمض هذا المقام و ما أقواه فإن نقلت الخبر على المعنى تعرف السامع إنك نقلت على المعنى فتكون صادقا من حيث إخبارك عن المعنى عند السامع و لا تسمى صادقا من حيث نقلك لما نقلته فإنك ما نقلت عين لفظ من نقلت عنه و لا تسمى كاذبا فإنك قد عرفت السامع أنك نقلت المعنى فأنت مخبر للسامع عن فهمك لا عمن تحكي عنه فأنت صادق عنده في نقلك عن فهمك لا عن الرسول أو من تخبر عنه إن ذلك مراده بما قال فالصدق في المقال عسير جدا قليل من الناس من يفي به إلا من أخبر السامع أنه ينقل على المعنى فيخرج عن العهدة فالصدق في الحال أهون منه إلا أنه شديد على النفوس فإنه يراعي جانب الوفاء لما عاهد من عاهد عليه و قد قرن اللّٰه الجزاء بالصدق و السؤال عنه فقال ﴿لِيَجْزِيَ اللّٰهُ الصّٰادِقِينَ بِصِدْقِهِمْ﴾ [الأحزاب:24]



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