الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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﴿فَأَجِرْهُ حَتّٰى يَسْمَعَ كَلاٰمَ اللّٰهِ﴾ [التوبة:6] فذلك لأهل السماع من الحق في الأشياء لا من بين الأشياء لأن بينية الأشياء عبارة عن النسب و هي أمور عدمية لا وجودية فإذا كان الحديث منها كان بلا واسطة و إذا كان من الأشياء فذلك قوة الفهم عن اللّٰه «ورد في الخبر الصحيح أن اللّٰه قال على لسان عبده سمع اللّٰه لمن حمده» فهذا عين قوله ﴿فَأَجِرْهُ حَتّٰى يَسْمَعَ كَلاٰمَ اللّٰهِ﴾ [التوبة:6] و الذي نطلبه في هذا الطريق كلام اللّٰه من بين الأشياء لا في الأشياء و لا من الأشياء و إن كان هو عين وجود الأشياء فإنه ليس عين الأشياء فالأعيان في الموجودات و اعلم أن شروط الخلة لا تصح بين المؤمنين و لا بين النبي و تابعيه فإذا لم تصح شروطها لا تصح هي في نفسها و لكن في دار التكليف فإن النبي و المؤمن بحكم اللّٰه لا بحكم خليله و لا بحكم نفسه و من شروط الخلة أن يكون الخليل بحكم خليله و هذا لا يتصور مطلقا بين المؤمنين و لا بين الرسل و أتباعهم في الدار الدنيا و المؤمن تصح الخلة بينه و بين اللّٰه و لا تصح بينه و بين الناس لكن تسمى المعاشرة التي بين الناس إذا تأكدت في غالب الأحوال خلة فالنبي ليس له خليل و لا هو صاحب لاحد سوى نبوته و كذلك المؤمن ليس له خليل و لا صاحب سوى إيمانه كما إن الملك ليس هو صاحب أحد سوى ملكه فمن كان بحكم ما يلقى إليه و لا يتصرف إلا عن أمر إلهي فلا يكون خليلا لا حد و لا صاحبا أبدا فمن اتخذ من المؤمنين خليلا غير اللّٰه فقد جهل مقام الخلة و إن كان عالما بالخلة و الصحبة و وفاها حقها مع خليله و هو حاكم فقد قدح في إيمانه لما يؤدي ذلك إليه من إبطال حقوق اللّٰه فلا خليل إلا اللّٰه فالمقام عظيم و شأنه خطير و اللّٰه الموفق لا رب غيره

[السمراء و هم صنف خاص من المحدثين]

و منهم رضي اللّٰه عنهم السمراء و لا عدد يحصرهم و هم صنف خاص من أهل الحديث قال تعالى ﴿وَ شٰاوِرْهُمْ فِي الْأَمْرِ﴾ [آل عمران:159] و هذا الصنف لا حديث لهم مع الأرواح فحديثهم مع اللّٰه من قوله تعالى



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