الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و قد ثبت حكم المكره في الشرع و علم حد المكره الذي اتفق عليه و المكره الذي اختلف و هذه الجوارح من المكرهين المتفق عليهم أنهم مكرهون فتشهد هذه الأعضاء بلا شك على النفس المدبرة لها السلطانة عليها و النفس هي المطلوبة عند اللّٰه عن حدوده و المسئولة عنها و هي مرتبطة بالحواس و القوي لا انفكاك لها عن هذه الأدوات الجسمية الطبيعية العادلة الزكية المرضية المسموع قولها و لا عذاب للنفس إلا بوساطة تعذيب هذه الجسوم و هي التي تحس بالآلام المحسوسة لسريان الروح الحيواني فيها

[عذاب النفس]

و عذاب النفس بالهموم و الغموم و غلبة الأوهام و الأفكار الرديئة و ما ترى في رعيتها مما تحس به من الآلام و يطرأ عليها من التغييرات كل صنف بما يليق به من العذاب و قد أخبر بمآلها لإيمانها إلى السعادة لكون المقهور غير مؤاخذ بما جبر عليه و ما عذبت الجوارح بالألم إلا لإحساسها أيضا باللذة فيما نالته من حيث حيوانيتها فافهم فصورتها صورة من أكره على الزنا و فيه خلاف و النفس غير مؤاخذة بالهم ما لم تعمل ما همت به بالجوارح و النفس الحيوانية مساعدة بذاتها مع كونها من وجه مجبورة فلا عمل للنفوس إلا بهذه الأدوات و لا حركة في عمل للادوات إلا بالأغراض النفسية فكما كان العمل بالمجموع وقع العذاب بالمجموع ثم تفضي عدالة الأدوات في آخر الأمر إلى سعادة المؤمنين فيرتفع العذاب الحسي

[ارتفاع العذاب في آخر الأمر عن أهل الإيمان]

ثم يقضي حكم الشرع الذي رفع عن النفس ما همت به فيرتفع أيضا العذاب المعنوي عن المؤمن فلا يبقى عذاب معنوي و لا حسي على أحد من أهل الايمان و بقدر قصر الزمان في الدار الدنيا بذلك العمل لوجود اللذة فيه و أيام النعيم قصار تكون مدة العذاب على النفس الناطقة و الحيوانية الدراكة مع قصر الزمان المطابق لزمان العمل فإن أنفاس الهموم طوال فما أطول الليل على أصحاب الآلام و ما أقصره بعينه على أصحاب اللذات و النعيم فزمان الشدة طويل على صاحبه و زمان الرخاء قصير



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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