الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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(وفق مخطوطة قونية)

«فلما بلغه ما أنزل اللّٰه فيه جاء بزكاته إلى رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم فامتنع رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم أن يأخذها منه و لم يقبل صدقته إلى أن مات صلى اللّٰه عليه و سلم» و سبب امتناعه صلى اللّٰه عليه و سلم من قبول صدقته أن اللّٰه أخبر عنه أنه يلقاه منافقا و الصدقة إذا أخذها النبي منه صلى اللّٰه عليه و سلم طهره بها و زكاه و صلى عليه كما أمره اللّٰه و أخبر اللّٰه أن صلاته سكن للمتصدق يسكن إليها و هذه صفات كلها تناقض النفاق و ما يجده المنافق عند اللّٰه فلم يتمكن لهذه الشروط أن يأخذ منه رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم الصدقة لما جاءه بها بعد قوله ما قال و امتنع أيضا بعد موت رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم عن أخذها منه أبو بكر و عمر لما جاء بها إليهما في زمان خلافتهما فلما ولي عثمان بن عفان الخلافة جاءه بها فأخذها منه متأولا أنها حق الأصناف الذين أوجب اللّٰه لهم هذا القدر في عين هذا المال

[ما انتقد على فعل عثمان بن عفان]

و هذا الفعل من عثمان من جملة ما انتقد عليه و ينبغي أن لا ينتقد على المجتهد حكم ما أداه إليه اجتهاده فإن الشرع قد قرر حكم المجتهد و رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم ما نهى أحدا من أمرائه أن يأخذ من هذا الشخص صدقته و قد ورد الأمر الإلهي بإيتاء الزكاة

[حكم رسول اللّٰه قد يفارق حكم غيره]

و حكم رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم في مثل هذا قد يفارق حكم غيره فإنه قد يختص رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم بأمور لا تكون لغيره لخصوص وصف إما تقتضيه النبوة مطلقا أو نبوته صلى اللّٰه عليه و سلم فإن اللّٰه يقول لنبيه صلى اللّٰه عليه و سلم في أخذ الصدقة ﴿تُطَهِّرُهُمْ وَ تُزَكِّيهِمْ بِهٰا﴾ [التوبة:103]



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