الفتوحات المكية

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﴿كَبُرَ مَقْتاً عِنْدَ اللّٰهِ أَنْ تَقُولُوا مٰا لاٰ تَفْعَلُونَ﴾ [الصف:3] في أثر قوله ﴿يٰا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لِمَ تَقُولُونَ مٰا لاٰ تَفْعَلُونَ﴾ [الصف:2] و هذه حالة من أمر بالبر غيره و نسي نفسه ﴿أَ فَلاٰ تَعْقِلُونَ﴾ [البقرة:44] يقول أما لكم عقول تنظرون بها قبيح ما أنتم عليه

[الخشوع لله لا يكون إلا عن تجل إلهى]

ثم ذكر الخشوع للصلاة فقال ﴿وَ إِنَّهٰا لَكَبِيرَةٌ إِلاّٰ عَلَى الْخٰاشِعِينَ﴾ [البقرة:45] فإن الخشوع لله لا يكون إلا عن تجل إلهي و الصلاة مناجاة فلا بد من تجل إن رأيته خاشعا و إن لم يخشع في صلاته فما صلى فإن رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم قد جعل التجلي الإلهي سببا لوجود الخشوع في القلب و لا سيما في الصلاة و التجلي لأكثر الناس إما بالحضور و هو لأفراد و إما بالاستحضار الخيالي و هو الغالب في عموم الخواص فإن اللّٰه في قبلة المصلي و أما خشوع الأكابر الذين التحقوا بالملإ الأعلى فخشوعهم عن التجلي الحقيقي فهم في صلاتهم دائمون و إن أكلوا و شربوا و نكحوا و اتجروا فأمرهم اللّٰه تعالى إذا كانوا في مثل هذه الحال أن يستعينوا بالصلاة و الصبر عليها فإن المصلي يناجي ربه فإذا حصل العبد في محل المناجاة مع ربه دائما استلزمه الحياء من اللّٰه فلا يتمكن له أن يأمر أحدا ببر و ينسى نفسه منه بل يبتدئ بنفسه

[البر هو الإحسان و الخير]

و البر هو الإحسان و الخير و من جملة ذلك أن يكون محتاجا للقمة يأكلها و يرى غيره محتاجا إليها و الحاجة على السواء فيعطي غيره و ينسى نفسه و قد قال له ربه ابدأ بنفسك و شرع له ذلك حتى في الدعاء إذا دعا اللّٰه لأحد أن يبدأ بنفسه أحق و غذاء الأرواح الطاعات فهي محتاجة إليها و من جملة طاعاتها الأمر بالطاعات فيقوم هذا الغافل القليل الحياء من اللّٰه فيأمر غيره بالبر و هو على الفجور و ينسى نفسه فلا يأمرها بذلك فهو بمنزلة من يغذى غيره و يترك نفسه و هو في غاية الحاجة إلى ذلك الغذاء و نفسه أوجب عليه من ذلك الغير و السبب في ذلك ما أبينه لك إن شاء اللّٰه

(وصل)و ذلك أن جميع
الخيرات صدقة على النفوس

أي خير كان حسا و معنى فينبغي للمؤمن أن يتصرف في ذلك بشرع ربه لا بهواه فإنه عبد مأمور تحت أمر سيده فإن تعدى شرع ربه في ذلك لم يبق له تصرف إلا هوى نفسه فسقط عن تلك الدرجة العلية إلى ما هو دونها عند العامة من المؤمنين و أما عند العارفين فهو عاص



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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