الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

[استقبال عين الكعبة و استقبال جهتها]

فلهذا شرع له استقبال البيت إذا أبصره حين صلاته و استقبال جهته إذا غاب عنه و فرضه في اجتهاده بالغيبة إصابة الاجتهاد لا إصابة العين و ذلك لو كان فرضه إصابة العين فإن العبد مأمور بأن يستقبل ربه بقلبه في صلاته بل في جميع حركاته و سكناته لا يرى إلا اللّٰه و قد علمنا إن ذات الحق و عينه يستحيل على المخلوق معرفتها فمن المحال استقبال عين ذاته بقلبه أي من المحال أن يعلم العاقل ربه من حيث عينه و إنما يعلمه من حيث جهة الممكن في افتقاره إليه و تميزه عنه بأنه لا يتصف بصفات المحدثات على الوجه الذي يتصف به المحدث الممكن لأنه ليس كمثله شيء فلا يعرفه إلا بالسلوب و هذا سبب قولنا بالجهة لا بالعين

[الفرض على المكلف هو الاجتهاد لا الاصابة في الاجتهاد]

و الإصابة إصابة الاجتهاد لا إصابة العين و لهذا كان المجتهد مأجورا على كل حال و لا سيما و الاجتهاد في مذهبنا في الأصول كما هو في فروع الأحكام لا فرق و أما «قول رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم في المجتهد إنه مصيب و مخطئ» فمعناه عندنا في هذه المسألة و أمثالها أن المجتهد في الإصابة ما هي إصابة العين أو إصابة الجهة أن المصيب من قال إصابة الجهة و المخطئ من قال إصابة العين فإن إصابة الجهة في غير الغيم المتراكم ليلا أو نهارا في البراري لا يقع إلا بحكم الاتفاق فأحرى إصابة العين لا بحكم العلم و ما تعبدنا اللّٰه بالإرصاد و لا بالهندسة المنبئة على الإرصاد المستنبط منها أطوال البلاد و عروضها فإنا بكل وجه إذا أخذنا نفوسنا بها على غير يقين فتبين إن الفرض على المكلف الاجتهاد لا الإصابة فلا إعادة على من صلى و لم يصب الجهة إذا تبين له ذلك بعد ما صلى كذلك

الاعتبار في الباطن



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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