الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

و اعلم أن هذا الأجر أجر تفضل إلهي عينه السيد لعبده فإن العبد لا ينبغي له استحقاق الأجر على سيده فيما يستعمله فيه فإنه ملكه و عين ماله و لكن تفضل سيده عليه بأن عين له على عمله أجرا و سره خلقه على الصورة فإن عبيدنا إخواننا فافهم و أما العلماء بالله عزَّ وجلَّ فأجرهم مشاهدة سيدهم إذا رجعوا إليه من التبليغ الذي أمرهم به فإنهم حزنوا لمفارقة ذلك المشهد الأقدس و مشاهدة الأكوان فوعدهم بأنهم إذا رجعوا إليه كان لهم المزيد في المشاهدة فأخبروا الناس أن أجرهم على اللّٰه

(فصل بل وصل فيمن يقول مثل ما يقول من يسمع الأذان)

[اختلاف الفقهاء في كيفية إجابة الأذان لمن يسمعه]

و اختلف علماء الشريعة في ذلك فمن قائل إنه يقول مثل ما يقول المؤذن كلمة بكلمة إلى آخر النداء و من قائل إنه يقول مثل ما يقول المؤذن إلا إذا جاء بالحيعلتين فإن السامع يقول لا حول و لا قوة إلا بالله و بالقول الأول أقول فإنه أولى إلا أن يثبت عن رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم ذكر الحوقلة في ذلك فأنا أقول به و لا أشترط أن يمشي السامع مع المؤذن في كل كلمة و لكن إن شاء قال مثل ما يقول المؤذن في أثر كل كلمة و إن شاء إذا فرغ يقول مثله و ذلك في المؤذن الذي يؤذن للاعلام في المنارة أو على باب المسجد أو في نفس المسجد ابتداء عند دخول الوقت من قبل أن يعلم من في المسجد إن وقت الصلاة دخل فهذا هو المؤذن الذي شرع له الأذان و أما المؤذنون في المسجد بين الجماعة الذين يسمعون الأذان فهم ذاكرون اللّٰه بصورة الأذان فلا يجب على السامع أن يقول مثله فإن ذلك عندنا بمنزلة السامع يقول مثل ما قال المؤذن و لم يشرع لنا و لا أمرنا أن نقول مثل ما يقول السامع إذا قال ما يقول المؤذن

اعتبار ذلك في الباطن

قال تعالى فيما يقوله الرسول صلى اللّٰه عليه و سلم



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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