الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فالمبادرة إلى أول الأوقات في العبادات هو الأحوط و المطلوب من العباد في حال التكليف و لهذا الاحتراز و الاحتياط يحمل الأمر الإلهي إذا ورد معرى عن قرائن الأحوال التي يفهم منها الندب أو الإباحة على الوجوب و يحمل النهي كذلك على الحظر إذا تعرى عن قرينة حال تعطيك الكراهة و لا تتوقف عن حمل الأمر و النهي على ما قلناه إلا بقرينة حال تخرجهما عن حكم الوجوب في الأمر و حكم الحظر في النهي

[أهل الجمع و الوجود هم أهل الشريعة و الحقيقة]

فقد بان لك يا أخي اعتبار الأوقات مطلقا و اعتبار الوقت المرغب فيه بعد أن عرفناك بمذاهب علماء الشريعة فيه للجمع بين العبادتين الظاهرة في حسك و الباطنة في عقلك فتكون من أهل الجمع و الوجود فإنك إذا طلبت الطريق إلى اللّٰه من حيث ما شرعه اللّٰه كان الحق الذي هو المشرع غايتك و إذا طلبته من حيث ما تعطيه نفسك من الصفاء و الالتحاق بعالمها من التنزه عن الحكم الطبيعي عليها كان غايتها الالتحاق بعالم الروحاني خاصة و من هناك تنشأ لها شرائع الأرواح تسلك عليها و بها حتى يكون الحق غايتها هذا إن فسح اللّٰه له في الأجل و إن مات فلن يدرك ذلك أبدا و قد أفردنا لهذه الطريقة خلوة مطلقة غير مقيدة في جزء يعمل عليها المؤمن فيزيد إيمانا و يعمل بها و عليها غير المؤمن من كافر و معطل و مشرك و منافق فإذا و في العمل عليها و بها كما شرطناه و قررناه فإنه يحصل له العلم بما هو الأمر عليه في نفسه و يكون ذلك سبب إيمانه بوجود اللّٰه إن كان معطلا و بتوحيد اللّٰه إن كان مشركا و بحصول إيمانه إن كان كافرا و بإخلاصه إن كان منافقا أو مرتابا فمن دخل تلك الخلوة و عمل بتلك الشرائط كما قررنا أثمرت له ما ذكرناه و ما سبقني إليها أحد في علمي إلا إن كان و ما وصل إلي فإن اللّٰه لا تحجير عليه يؤتي الحكمة من يشاء فإني أعلم أن أحدا من أهل الطريق ما يجهلها إن كان صاحب كشف تام و لكن ما ذكروها و لا رأيت أحدا منهم نبه عليها إلا الخلوات المقيدة و لو لا ما سألني فيها أخونا و ولينا أبو العباس أحمد بن على ابن ميمون بن آب التوزري تم المصري المعروف بالقسطلاني المجاور الآن بمكة ما خطر لنا الإبانة عنها فربما اتفق لمن تقدمنا مثل هذا فلم نبهوا عليها لعدم السائل

(فصل بل وصل في وقت صلاة العصر)

[اختلاف علماء الشريعة في أول وقت صلاة عصر]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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