الفتوحات المكية

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﴿رِجْسٌ مِنْ عَمَلِ الشَّيْطٰانِ فَاجْتَنِبُوهُ﴾ [المائدة:90]

[البناء و المدن حال الجمعية شبيه بجمعية الأسماء الإلهية]

و أما من يرى الاستقبال في الكنف المبنية دون الصحاري فإن الكنف المبنية و المدن حال الجمعية فتشبه جمعية الأسماء الإلهية فما من شيء إلا و هو مرتبط بحقيقة إلهية به كانت معقوليته فإن المعدوم مرتبط بالتنزيه فلا يخلو صاحب هذا الحال عن مشاهدة ربه من حيث تلك الحقيقة فإن البناء و المدن دلتاه على ذلك فجاز له أن يستقبل القبلة و أن يكون بحكم الوطن

[الاختيار من العبد تقييد لرؤية الحقيقة الإلهية]

و أما في الصحراء فهو وحده فلا مانع له من ترك استقبال القبلة بالحاجة فيتأدب و لا يستقبل احتراما لقول الشارع فإنه ما في الصحراء حالة تقيده لرؤية حقيقة إلهية إلا اختياره و لا ينبغي للعبد أن يكون له اختيار مع سيده قال تعالى ﴿وَ رَبُّكَ يَخْلُقُ مٰا يَشٰاءُ وَ يَخْتٰارُ﴾ [القصص:68] فما اختار المدن و الكنف المبنية ما كان لهم الخيرة فيما لم يختره لهم فليس لهم أن يختاروا بل يقفون عند المراسم الشرعية فإن الشارع هو اللّٰه تعالى فيستعمل بهذا النظر جميع الأخبار الواردة في استقبال القبلة بالحاجة و استدبارها و النهي عن ذينك

[القول الجامع في الطهارات]

فقد أثبتنا في هذا الباب من فصول الطهارة ما يجري مجرى الأصول و القول الجامع في الطهارة هو أن نقول الطهارة من الإنسان المعقولة المعنى بما يزيلها أي شيء كان من البراهين جدلية كانت أو وجودية فإن الغرض إزالتها لا بما تزال ما لم يكن الذي تزال به يؤثر نجاسة في المحل فاذن ما زالت النجاسة و أما التي هي غير معقولة المعنى فطهارتها موقوفة على ما ينص اللّٰه تعالى في ذلك أو رسوله فيزيلها بذلك فإن شاء الحق عرفك بمعناه و نسبته فتكون إزالتها في حقك عن علم محقق و إذ لم يكن ذلك فهو المسمى بالتعبد و هو المعنى المطلق في جميع التكاليف و هو العلة الجامعة ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4] انتهى الجزء الخامس و الثلاثون (بسم اللّٰه الرحمن الرحيم)



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