الفتوحات المكية

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و يحتاج الناصح إلى علم كثير من علم الشريعة لأنه العلم العام الذي يعم جميع أحوال الناس و علم زمانه و مكانه و ما ثم إلا الحال و الزمان و المكان و بقي للناصح علم الترجيح إذا تقابلت هذه الأمور فيكون ما يصلح الزمان يفسد الحال أو المكان و كذلك كل واحد منها فينظر في الترجيح فيفعل بحسب ما يترجح عنده و ذلك على قدر إيمانه مثال ذلك أن يعلم أن الزمان قد أعطى بحاله في أمرين هما صالحان في حق شخص و ضاق الزمان عن فعلهما معا فيعدل إلى أولاهما فيشير به على المستشير و كذلك إذا عرف من حال شخص المخالفة و اللجاج و إنه إذا دله على أمر فيه مصلحته يفعل بخلافه فمن النصيحة أنه لا ينصحه بل يشير عليه بخلاف ذلك إذا علم إن الأمر محصور بين أن يفعل ذلك أو هذا الذي فيه المصلحة و شأنه المخالفة و اللجاج فيشير عليه بما لا ينبغي فيخالفه فيفعل ما ينبغي و الأولى عندي تركه و لقد جرى لي مع أشخاص أظهرنا لهم أن في فعلهم ذلك الخير الذي نريده منهم نكايتنا و هم يريدون نكايتنا فأشرنا عليهم أن لا يفعلوا ذلك و لهم في فعله الخير العظيم لهم فلم يفعلوا و فعلوا ما نهيتهم عنه أن يفعلوه فهذه نصيحة خفية لا يشعر بها كل أحد و هذا يسمى علم السياسة فإنه يسوس بذلك النفوس الجموحة الشاردة عن طريق مصالحها فلذلك قلنا إن الناصح في دين اللّٰه يحتاج إلى علم كثير و عقل و فكر صحيح و روية حسنة و اعتدال مزاج و تؤدة و إن لم تكن فيه هذه الخصال كان الخطاء أسرع إليه من الإصابة و ما في مكارم الأخلاق أدق و لا أخفى و لا أعظم من النصيحة و لنا فيه جزء سميناه كتاب النصائح ذكرنا فيه ما لا يعول عليه و ما يعول عليه و لكن أكثره فيما لا يعول عليه مما يعول الناس عليه و لكن لا يعلمون

(وصية)

و عليك بمراعاة حالك في الزمان بين الصلاتين و أنت لا تخلو أبدا أن تكون بين صلاتين فإن الأمر دور و الزمان الذي بين الظهر و العصر زمان بين صلاتين و كذلك بين العصر و المغرب و بين المغرب و العشاء و بين العشاء و الصبح و بين الصبح و الظهر و دار الدور و جاء الكور و إذا خرج وقت صلاة دخل وقت صلاة لأخرى إلا صلاة الصبح فإنه لا يدخل وقت صلاة الظهر بخروج وقت صلاة الصبح بلا خلاف و كذلك العتمة و الصبح بخلاف إلا أنه لا يدخل وقت الظهر إلا بعد خروج وقت الصبح لا بد من ذلك فلا يدخل وقت صلاة حتى يخرج وقت التي قبلها فالداخلة أبدا على أثر الخارجة و قد يكون بعد طلوع الشمس وقت أداء الصبح بوجه إلى أن تزول الشمس فيدخل وقت الظهر و ذلك أن الإنسان قد يصلي الركعة الأولى من الصبح مثلا قبل طلوع الشمس و يقول الشارع فيه إنه أدرك الصبح فتطلع الشمس عليه و قد شرع في الركعة الثانية من الصبح فلو أطالها إلى حد الزوال لجاز و ذلك وقتها و هو مؤد لها فما خرج وقت صلاة الصبح في حق هذا حتى دخل وقت الظهر و هكذا في جميع الصلوات فإن أوقات هذه الصلوات فيها خلاف بين العلماء فلهذا ذكرناها تنبيها على إن فيها خلافا فيجوز على هذا أن تكون صلاة على أثر صلاة و لا لغو بينهما فقد جعل أن بين الصلاتين زمانا لا صلاة فيه ذلك الزمان هو زمان اللغو أو تركه و إنما قلنا زمان اللغو أو تركه للحديث الثابت صلاة على أثر صلاة لا لغو بينهما كتاب في عليين و يدخل في هذا الحديث صلاة النافلة بعد النافلة و النافلة بعد الفريضة و الفريضة بعد النافلة و الفريضة بعد الفريضة و اللغو من الكلام هو الساقط لا دخول له في الميزان و هو المباح فيقول رسول اللّٰه ﷺ في الرجل يصلي الصلاة ثم يتبعها بصلاة أخرى و لم يفعل بين هاتين الصلاتين في الزمان الذي لا يكون فيه مصليا فعلا مباحا من قول و عمل بل كان مشتغلا بما يدخل الميزان من أمر مندوب إليه من ذكر أو غير ذكر ثم يصلي الصلاة الأخرى فإن ذلك كتاب في عليين لأنه لم يفعل بين الصلاتين لغوا أصلا و هذا عزيز الوقوع فإن أحمد أحوال الناس اليوم من يتصرف في المباح فلا عليه و لا له و الغالب من أحوال الناس التصرف في المكروه أو المحظور فلهذا أوصيتك بمراعاة الزمان الذي بين الصلاتين و ما رأيت أحدا نبه عليه إلا إن كان و ما وصل إلينا إلا رسول اللّٰه ﷺ و منه أخذنا ذلك

(وصية)



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