الفتوحات المكية

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﴿لاٰ يُخْلِفُ الْمِيعٰادَ﴾ [آل عمران:9] فلا بد من رد أهل الإلحاد العقد الصحيح إن كل ما سوى اللّٰه ريح كان بعض مشايخنا يقول من باب الإشارة ﴿فَسَخَّرْنٰا لَهُ الرِّيحَ﴾ [ص:36] الريح تهب و لا تثبت فأثبت و من ذلك الفوائد في الزوائد من الباب 232 ﴿قُلْ رَبِّ زِدْنِي عِلْماً﴾ [ طه:114] تزدد حكما من علم يرجع إليه فتوكل في تحصيله عليه إنما سميت بالزوائد لأنه ما زاد على الواحد فهو زائد و كل زائد واحد فما زاد عليه سوى نفسه فقل بالشخص لا بنوعه و جنسه فإن راعيت أحدية الكثرة فقد نبهناك على ذلك غير مرة زوائد الحروف عشرة كالمقولات الجامعة بين العلل و المعلومات و قد أودعناها باب النفس بفتح الفاء من هذا الكتاب بين إيجاز و إسهاب و حروف الزوائد أسلمني و تاه فانظر ما أحسن هذا الجمع بالله ما أحسن ما جمع و لقد قال فصدع تاه المعروف و العارف فأين المعارف تاه المعروف من التيه و تيه العارف بحيرته فيه أسلم العارف لنفسه فأراد أن يلحقه بجنسه فلما تحقق علم أنه ما يلحق فأسلمه بأن قال لا أحصي ثناء عليك فهذه بضاعتك رددناها إليك

[الإرادة مستفادة]

و من ذلك الإرادة مستفادة من الباب 233 الإرادة صفة اختصاص فلها المباص و المناص و لهذا وصف نفسه بالمقدم و المؤخر و تسمى بالأول و الآخر و قد كان و لا شيء معه فهو السابق و هو الذي يصلي علينا فهو اللاحق فالمنحة الإلهية و الإفادة لا تكون إلا لأهل الإرادة و القائل في حد الإرادة بترك ما عليه العادة جهل من قائله فإنه ما ثم عادة لأنها من الإعادة و ما في الوجود أعاده من أغاليط النفس القول برجوع الشمس و ما رجعت و لا نزلت و لا ارتفعت هي في فلكها سابحة غادية رائحة غدوها و رواحها حكم البصر و ما يعطيه في الكرة النظر قرأ ابن مسعود "و الشمس تجري لا مستقر لها" و قرأ غيره ﴿لِمُسْتَقَرٍّ لَهٰا﴾ [يس:38] و كل ذلك صحيح لمن تأمل فيا أيها الطالب تأمل



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