الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

«مطل الغني ظلم» و الاستناد إليه غنم لا يقال مطل فيمن كان أداؤه إلى أجل و لو كان أغنى الناس و هنا وقع الالتباس الحق له الغني و من أقرضه بلغ المنى و دع اللجاج فما هو محتاج أنت من جملة خزائنه فما خرج الشيء عن معادنه فما أعطى إلا من خزانته لما أعطته حقيقة مكانته و حصلت أنت على الأجران فهمت الأمر

[الباسط قاسط]

و من ذلك الباسط قاسط من الباب 226 المقسط و القاسط استويا في العدول على ما تعطيه الأصول فإن كل واحد منهما مائل فهو عادل و لذا سمي القاسط جائر أو لم يكن للعادل مغايرا فالصفة واحدة فكيف حرم الفائدة بان الصبح لذي عينين لما هداه النجدين و أقيم المكلف في الوسط فمنهم من أقسط و منهم من قسط فالمقسط أخذ ذات اليمين فارتفع إلى عليين و القاسط أخذ ذات الشمال فنزل إلى سجين فما عدل بكل واحد سوى طريقه و طريقه ما خرج عن حكم تحقيقه فالطريق ساقة و قاده إما إلى

شقاء و إما إلى سعادة فاعرف الطريق

و اختر الرفيق تنج من عذاب الحريق

[الفناء في الفناء]

و من ذلك الفناء في الفناء من الباب 227 أكرم العرب أنتنهم عذرة إذا كان له ما يجود به و إلا كانت المعذرة ما يكثر الوراد إلا على أرباب الإرفاد الأجواد البخيل بابه مغلق و الجواد جوده مطلق إذا فنى الكريم عن جوده في حال جوده فهو الدليل على صحة وجده و وجوده لا تقل في الجواد إنه بخل إذا منع من سئل منع الجواد الناصح عطاء و كشف الجاهل بالأمر غطاء فإن الجواد العالم عطاؤه نعمة و منعه لحكمه فلا يتهم رب الكرم كيف يتهم الفاني أنه بخيل بالفاني و هو إذا آمن باللقاء فما جعل أعطيته إلا في خزانة البقاء من نقل ما له من خزانته إلى خزانته كيف يقال بعلو منزلته في الجود و مكانته فما خزن من ماله اختزن فلا كريم إلا القديم

[الباقي يلاقي]

و من ذلك الباقي يلاقي من الباب 228 عظمت بالكرم مكانتي و ما خرج شيء من خزانتي لو لم يكن إلا الثناء فما ثم بيع و لا شراء لا يقال في التاجر إلا بار و فاجر و لا يوصف بالكرم فما في الوجود إلا تاجر لمن فهم ما شيء أحب إلى اللّٰه من أن يمدح و ما يمدح إلا بما منح فما جاد الكريم إلا على ذاته بما يحمده من صفاته و انتفع العير بالعوض بحكم العرض و إن سعى الكريم في إيصال الراحة للمعطي و نفعه فلجهله بعطائه و منعه فمن كرم و جاد و تخيل أن له فضلا على العباد فما جاد فإن الإحسان تبطله المنة مع طلب الامتنان و المنة أذى فاعلم ذا



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