الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 10029 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فمن سأل الحكمة فقد سأل النعمة و من أعطى الحكمة فقد أوتي الرحمة فإن سرمد العذاب بعد ذلك هذا المالك فما هو ممن عمت وجوده الرحمة و لا كان عند أهل الكشف و الوجود من أهل الحكمة فإن قال بالرجوع إليها و حكم بذلك عليهم و عليها فذلك الحكيم العليم المسمى بالرءوف الرحيم و هو الشديد العقاب لأنه لشدته في ذلك أعقب أهل النار حسن المآب

[الكيمياء تقدير عند الخبير]

و من ذلك الكيمياء تقدير عند الخبير من الباب 174 الكم تقدير موجود و متوهم فمن فاز به نال قلب الأعيان و تحكم كما يشاء في الأكوان في عالم الأرواح و الأبدان فهو صاحب الإكسير الذي حاز علم التدبير و التقدير بكلمة ينير الأجسام المظلمة انظر إلى كلمة كن في الوجود كيف ألحقت المعدوم بالموجود و لا تتوجه هذه الكلمة على الموجود بالعدم فإنه ليس لها في الرد إلى العدم قدم لأنها كلمة وجودية تطلبها الربوبية و العبودية لحصول الأعيان في الأكوان و لهذا يقال فيمن عدم قد كان فالعدم لمن انعدم نفسي و الوجود كرم إلهي امتناني فالذي ذهب إليه بعض أهل الكلام في هذه الأقسام من انعدام العرض لنفسه لا الأجسام ليكون الخالق خالقا على الدوام و أما أهل الحسبان فقالوا بتجدد جميع الأعيان في كل زمان و ما خصوا عينا من عين و لا كونا من كون و من علم إن المتحيزات كلها قامت من الأعراض جمع بين المذاهب و الأغراض

[سر الطلب من الأدب]

و من ذلك سر الطلب من الأدب من الباب 175 لا يتأدب مع اللّٰه حق الأدب إلا من تحقق بالطلب ما أوجدك إلا لتسأل فأنت الفقير الأذل فتسأله العزة و الغني لتحوز عموم الثناء فكل ما يثنى عليك به فهو الثناء المحمود فأنت الذليل الفقير الفقيد و أنت العزيز الغني الحميد فما ثم هجا بالنظر إليك و ما هنا جفا جفاة الحق عليك فإنه تعالى كما



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!