Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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فإن جماعة من العقلاء جعلوا الشريعة بمعزل فيما زعموا و الشريعة أبدا لا تكون بمعزل فإنها تعم قول كل قائل و اعتقاد كل معتقد و مدلول كل دليل لأنها عن اللّٰه المتكلم فيه قد نزلت و إنما قلنا في هذه الطائفة المعينة إنها جعلت الشريعة بمعزل مع كونها قالت ببعض ما جاءت به الشريعة فما أخذت من الشريعة إلا ما وافق نظرها و ما عدا ذلك رمت به أو جعلته خطابا للعامة التي لا تفقه هذا إذا عرفت و اعتقدت أن ذلك من عند اللّٰه لا من نفس الرسول و هو قوله تعالى الذي قال عنهم على طريق الذم لهم ﴿وَ يَقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَ نَكْفُرُ بِبَعْضٍ وَ يُرِيدُونَ أَنْ يَتَّخِذُوا بَيْنَ ذٰلِكَ سَبِيلاً أُولٰئِكَ هُمُ الْكٰافِرُونَ حَقًّا﴾ و قال تعالى ﴿أَ فَتُؤْمِنُونَ بِبَعْضِ الْكِتٰابِ وَ تَكْفُرُونَ بِبَعْضٍ﴾ [البقرة:85] فهذا معنى قولي إنهم جعلوا الشرع بمعزل و إن كان قد جاء الشرع بما هم عليه فما أخذوا منه ما أخذوا من كون الشرع جاء به و إنما قالوا به للموافقة احتجاجا و طائفتنا لا ترمي من الشريعة شيئا بل تترك نظرها و حكم عقلها بعد ثبوت الشرع لحكم ما يأتي به الشرع إليها و يقضي به فهم سادات العالم

إنما القوم سادة

إنما القول منه كن

و الذي لا يريده *** و هو سهل فلا يهون

[التخلق بالأسماء الإلهية سبب ربط العالم بعضه ببعض]

و اعلم أن اللّٰه تعالى لما جعل بين الأشياء مناسبات ليربط العالم بعضه ببعض و لو لا ذلك لم يلتئم و لم يظهر له وجود أصلا و أصل ذلك المناسبة التي بيننا و بينه تعالى لولاها ما وجدنا و لا قبلنا التخلق بالأسماء الإلهية فما من حضرة له تعالى إلا و لنا فيها قدم و لنا إليها طريق أمم و سأورد ذلك إن شاء اللّٰه في باب الأسماء الإلهية من هذا الكتاب و أعظم الحضرات الإلهية في هذا الباب أنه لا يشبهه شيء و ما ثم إلا نحن و من لم يشبهك فلم تشبهه فكما انتفت المثلية عنه انتفت المثلية عن العالم و هو كل ما سواه بالمجموع فإن العالم إنسان واحد كبير لا يماثل أي لا مثل له و لهذا هو كل مبدع على غير مثال فلا يخلو أهل اللّٰه إما أن يجعلوا الحق عين العالم فلا يماثله شيء لأنه ليس ثم إلا اللّٰه و العالم صور تجليه ليس غيره فهو له و إن كان العالم وجودا آخر فما ثم إلا اللّٰه و مسمى العالم فلا مثل لله إلا أن يكون إله و لا إله إلا اللّٰه فلا مثل لله و لا مثل للعالم إلا أن يكون عالم و لا عالم إلا هذا العالم و هو الممكنات فلا مثل للعالم فصحت المناسبة من وجهين من نفي المثلية و من قبوله للأسماء و الحضرات الإلهية و كل ما في العالم من المماثلة بعضه ببعض فإنه لا يقدح في نفي المماثلة فإن تفاصيل العالم و أجزاءه المتماثلة و المختلفة و المتضادة كالاسماء لله المختلفة و المتماثلة و المتضادة كالعليم و العالم و العلام هذه متماثلة و هو أيضا الضار النافع فهذه المتضادة و هو العزيز الحكيم فهذه المختلفة و مع هذا فليس كمثله شيء فهذه الآية له و لنا من أجل الكاف و الاشتراك يؤذن بالتناسب و إذا كان لا بد من التناسب فنظرنا أي شيء من المناسبات بين الحج و التسبيح حتى شبهه به تعالى فقلنا إن التسبيح هو الذكر العام في قوله ﴿وَ إِنْ مِنْ شَيْءٍ إِلاّٰ يُسَبِّحُ بِحَمْدِهِ﴾ [الإسراء:44] و



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