Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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و كذلك كان في قومه يدعى بهذا الاسم و دعاه الحق به هنا سخرية به على جهة الذم قال تعالى ﴿فَإِنّٰا نَسْخَرُ مِنْكُمْ كَمٰا تَسْخَرُونَ فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ﴾ فلما أوجد الكامل منا على الصورة عرفه الكامل من نفسه بما أعطاه من الكمال و كان العبد الكامل حقا كله و فنى عن عينه في نفسه لأنه قابلة بذاته و قد جعل اللّٰه له مثالا في باب المحبة فعشق إليه ما عشق من العالم من أي شيء كان من فرس أو دار أو دينار أو درهم فما قابلة به إلا بالجزء المناسب ففني منه ذلك الجزء المناسب لعشقه في ذلك و بقي سائره صاحيا لا حكم له فيه إلا إذا عشق شخصا مثله من جارية أو غلام فإنه يقابله بذاته كلها و بجميع أجزائه فإذا شاهده فنى فيه بكله لا بجزء منه فيغشى عليه و ذلك لكونه قابلة بكله كذلك العبد إذا رأى الحق أو تخيله فنى فيه عند مشاهدته لأنه على صورته فيقابله بذاته فما بقي فيه جزء يصحو حتى يعقل به ما فنى منه فيه و هكذا كل جزء من العالم مع الحق إذا تجلى له خشع له و فنى فيه لأن كل ما هو عليه شيء من العالم هو صورة الحق لما أعطاه منه إذ لا يصح أن يكون شيء من العالم له وجود ليس هو صورة الحق فلا بد أن يفنى العالم في الحق إذا تجلى له و لا يفنى الحق في الخلق لأن الخلق من الحق ما هو الحق من الخلق فنسبة الحق إلى الخلق نسبة الإنسان إلى كل صنف من العالم ما عدا نوع الإنسان فتفطن لما ذكرته لك من فناء كل شيء من العالم عن نفسه عند تجليه سبحانه له و لا يفنى الحق بمشاهدة الخلق و قد جاء الشرع بتدكدك الجبل و صعق موسى عليه السّلام عند التجلي الرباني فما عرفنا من الحق إلا ما نحن عليه و فينا الكامل و الأكمل فإن اللّٰه أعطى كل شيء خلقه فلما قرر اللّٰه هذه النعم على عبده و هداه السبيل إليها قال ﴿إِمّٰا شٰاكِراً﴾ [الانسان:3] فيزيده منها لأنا قلنا إنه ما أعطاه إلا منه ما أعطاه مطلقا ﴿وَ إِمّٰا كَفُوراً﴾ [الانسان:3]



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