Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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(فمن مسائل هذا الباب)

أن ميزان الطبيعة نازع الميزان الإلهي الروحاني لما علمت إن ميزانها ما هو بجعل جاعل و ذهلت أن ظهور ميزانها في شيء معين إنما هو بجعل جاعل و هو الميزان الإلهي فلما نازعت الطبيعة بميزانها الميزان الإلهي الروحاني و نازعها الميزان الروحاني الإلهي و هو الأقوى و له الحكم و ما وقع الخصام إلا من الطبيعة لأنها ما رضيت بذلك الميزان و لا بالوزن فارتفعت إلى اللّٰه تطلب منه أن يحكم بينها و بين الميزان الروحاني و يحكم بينها و بين الروح المتوجه عليها بالنكاح الروحاني النوري لظهور الأجسام الطبيعية و الأرواح الجزئية الإنسانية و غير الإنسانية إذ كان كل جسم في العالم مقيدا بصورة روح إلهي يلازم تلك الصورة به تكون مسبحة لله فمن الأرواح ما تكون مدبرة لتلك الصورة لكون الصورة تقبل تدبير الأرواح و هي كل صورة تتصف بالحياة الظاهرة و الموت فإن لم تتصف بالحياة الظاهرة و الموت فروحها روح تسبيح لا روح تدبير فإذا ظهرت صورة طبيعية تقبل التدبير و ظهرت لها نفس جزئية مدبرة لها كانت الصورة بمنزلة الأنثى و الروح المدبر لها بمنزلة الذكر فكانت الصورة له أهلا و كان الروح لتلك الصورة بعلا و هذه الأرواح الجزئية متفاضلة بالعلم بالأشياء فمنهم من له علم بأشياء كثيرة و منهم من لا يعلم إلا القليل و لا أعلم بالله من أرواح الصور التي لا حظ لها في التدبير لكون الصورة لا تقبل ذلك و هي أرواح الجماد و دونهم في رتبة العلم بالله أرواح النبات و دونهم في العلم بالله أرواح الحيوان و كل واحد من هؤلاء الأصناف مفطور على العلم بالله و المعرفة به و لهذا ما لهم هم إلا التسبيح بحمده تعالى و دون هؤلاء في العلم بالله أرواح الإنس و أما الملائكة فهم و الجمادات مفطورون على العلم بالله لا عقول لهم و لا شهوة و الحيوان مفطور على العلم بالله و على الشهوة و الإنس و الجن مفطورون على الشهوة و المعارف من حيث صورهم لا من حيث أرواحهم و جعل اللّٰه لهم العقل ليردوا به الشهوة إلى الميزان الشرعي و يدفع عنهم به منازعة الشهوة في غير المحل المشروع لها لم يوجد اللّٰه لهم العقل لاقتناء العلوم و الذي أعطاهم اللّٰه لاقتناء العلوم إنما هي القوة المفكرة فلذلك لم تفطر أرواحهم على المعارف كما فطرت أرواح الملائكة و ما عدا الثقلين و لما تفاضلت مراتب الإنس في العلم بالأشياء أراد بعض الأرواح أن يلحق حكم الصورة التي هو مدبر لها بحكم الطبيعة التي وجدت عنها تلك الصورة و تنزلها منزلتها في الحكم و هي لا تنزل منزلتها أبدا فقال له المعلم هذا الذي رمته محال فإن الصورة لا تفعل فعل الطبيعة فإنها منفعلة عنها و أين رتبة الفاعل من المنفعل أ لا ترى النفس الكلية التي هي أهل للعقل الأول و لما زوج اللّٰه بينهما لظهور العالم كان أول مولود ظهر عن النفس الكلية الطبيعية فلم تقو الطبيعة أن تفعل فعل النفس الكلية في الأشياء لأن الجزء ما له حكم الكل و الكل له حكم الجزء لأنه بما يحمله من الأجزاء كان كلا فلما عجز هذا الروح الجاهل عن إلحاق الصورة بالطبيعة التي هي أم له قال لعل ذلك لعجزى و قصوري عن إدراك العلم في ذلك فيعود في طلب ذلك من اللّٰه إلى اللّٰه فطلب من اللّٰه أن ينفعل عن الصورة ما ينفعل عن الطبيعة فوجد القوابل التي تؤثر فيها الصورة غير قابلة لما تقبله الصور التي لها قبول أثر الطبيعة و الحق سبحانه لا يعطي الأشياء كما تقدم إلا بحسب استعداد المعطي إياه إذ لا يقبل ما لا يعطيه استعداده فلما تبين لهذا الروح خطؤه من صوابه و علم أنه نفخ في غير ضرم طلب الوقوف مع صورته بحسب ما يعطيه استعدادها فقبل الوصول إلى إبراز ما يلقي منه إلى الصور لإظهار عين ما من أعيان الممكنات المعنوية و الحسية أو الخيالية ظهر له في فتوح المكاشفة بالحق لا في فتوح الحلاوة و لا في فتوح العبارة ثلاث مراتب مرتبة الحرية و قد تقدم بابها و هي التي تخرجه عن رق الأكوان لأنه كان قد استرقه هذا الطلب الذي كان عن جهله بالأمور و كان اللّٰه أعلم بذلك أنه لا يقع و لا علم له بما في علم اللّٰه و لا بما هو الأمر عليه فإن اتصف بهذا المقام و ظهر بهذه الحال مكنه اللّٰه من مراده و وهبه قوة الإيجاد و إن عجز عن الاتصاف بهذا المقام فهو بحاله أعجز فإن الحال موهبة إلهية و المقام مكتسب فعدل عند ذلك إلى المرتبة الثانية و هي على الترتيب في الحكم و الشهود فقام له الحق في التجلي الصمداني فإن قدر على النظر إليه فيه و ثبت لتجليه و لم يك جبليا فيصير دكا و لا موسويا فيصعق كان له ما طلب من اللّٰه من الانفعال عن صورته ما يعطيه استعدادها إذا أمكنه اللّٰه من الحكم فيها فإن كان موسويا أو جبليا لم يثبت لذلك التجلي المفني من يطلب باستعداده الفناء و المهلك من يطلب باستعداده الهلاك قامت له مرتبة إمساك الحياة على العالم القابل للموت فوجده في رتب على عدد درجات التجلي الصمداني فإنه موت أو إمساك حياة فإن اعتنى اللّٰه به و أعطاه القوة على ذلك تصرف في صورته كيف شاء و إن لم يعط



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