Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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فجاء بالاسم الرب بالنسبة الخاصة المتعلقة بالسماء خاصة و اسم الأرض مضمر لأنه للرب نسبة خاصة في الأرض ليست في السماء و لذلك لم يتماثلا بل السماء مغايرة للأرض لاختلاف النسب فنسبة الرب لخلق السماء مغايرة للنسبة الربانية لخلق الأرض و لو لا وجود الواو في قوله و الأرض الذي يعطي التشريك لقلنا باختلاف الاسم الرب لاختلاف النسبة و لكن الواو منعت و القرآن نزل باللسان العربي و الواو في اللسان في هذا الباب إذا ذكر الأول و لم يذكر في المعطوف عليه حكم آخر دلت على التشريك فإذا قلت قام زيد و عمر و فلا يريد القائل إذا وقف على هذا من غير قاطع عرضي مثل انقطاع النفس بسعلة تطرأ عليه أو شغل يشغله عن تمام تلفظه في مراده فهو للتشريك و لا بد فيما ذكر فالقاطع منعه أن يقول و عمر و خارج أو يقول و عمر و أبوه قاعد فهذه الواو واو الابتداء و الحال لا واو العطف فإذا قال قام زيد و خرج عمرو فهذه واو العطف أعني عطف جملة على جملة لا واو التشريك فلهذا جعلنا الواو في قوله و الأرض للتشريك في الاسم الإلهي المذكور الذي هو المعطوف عليه و كان الإضمار في النسبة التي يقع فيها التغاير فافهم فإنه من دقيق المعرفة بالله

[ما نص بتسرمد العذاب الذي هو الألم]

و اعلم أنه لما رأى بعض العارفين تعظيم هذه الأمور مشروعا ألحق كل ما سوى اللّٰه بالسعادة التي هي في حق أصحاب الأغراض من المخلوقين وصولهم إلى أغراضهم التي تخلق لهم في الحال فلم يبق صاحب هذا النظر أحدا في العذاب الذي هو الألم فإنه مكروه لذاته و إن عمروا النار فإن لهم فيها نعيما ذوقيا لا يعرفه غيرهم فإنه لكل واحدة من الدارين ملؤها فأخبر اللّٰه أنه يملؤها و يخلد فيها مؤبدا و لكن ما ثم نص بتسرمد العذاب الذي هو الألم لا الحركات السببية في وجود الألم في العادة بالمزاج الخاص المحس للألم فقد نرى الضرب و القطع و الحرق في الوجود ظاهرا و لكن لا يلزم عن تلك الأفعال ألم و لا بد و قد شاهدنا هذا من نفوسنا في هذا الطريق و هذا من شرف الطريق و فيه يقول أصحابنا ليس العجب من ورد في بستان فإنه المعتاد و إنما العجب من ورد في وسط النار لأنه غير معتاد يريد أنه ليس العجب ممن يجد اللذة في المعتاد و إنما العجب ممن يجد اللذة في غير السبب المعتاد و هو كان مطلوب أبي يزيد في قوله

سوى ملذوذ وجدي



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