Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

الحال عند الطائفة ما يرد على القلب من غير تعمل و لا اجتلاب فتتغير صفات صاحبه له و اختلف في دوامه فمنهم من قال بدوامه و منهم من منع دوامه و إنه لا بقاء له سوى زمان وجوده كالعرض عند المتكلمين ثم يعقبه الأمثال فيتخيل أنه دائم و ليس كذلك و هو الصحيح لكنه يتوالى من غير أن يتخلل الأمثال ما يخرجه عنه فمنهم من أخذه من الحلول فقال بدوامه و جعله نعتا دائما غير زائل فإذا زال لم يكن حالا و هذا قول من يقول بدوامه قال بعضهم ما أقامني اللّٰه منذ أربعين سنة في أمر فكرهته قال الإمام أشار إلى دوام الرضي و هو من جملة الأحوال هذا الذي قاله الإمام يحتمل و لكنه في طريق اللّٰه بعيد و إنما الذي ينبغي أن يقال في قول هذا السيد إنه أقام أربعين سنة ما أقامه اللّٰه في ظاهره و لا في باطنه في حال مذموم شرعا بل لم تزل أوقاته عليه محفوظة بالطاعات و ما يرضى اللّٰه و لقد لقيت شخصا صدوقا صاحب حال على قدم أبي يزيد البسطامي بل أمكن في شغله له إدلال في أدب فقال لي يوما لي خمسون سنة ما خطر لي في نفسي خاطر سوء يكرهه الشرع فهذه عصمة إلهية فيكون كلام ذلك السيد من هذا القبيل و الأحوال مواهب لا مكاسب

[الحال من جملة نعوت إلهى]

اعلم أن الحال نعت إلهي من حيث أفعاله و توجهاته على كائناته و إن كان واحد العين لا يعقل فيه زائد عليه قال تعالى عن نفسه ﴿كُلَّ يَوْمٍ هُوَ فِي شَأْنٍ﴾ [الرحمن:29] و أصغر الأيام الزمن الفرد الذي لا يقبل القسمة فهو فيه في شئون على عدد ما في الوجود من أجزاء العالم الذي لا ينقسم كل جزء منه بهذا الشرط فهو في شأن مع كل جزء من العالم بأن يخلق فيه ما يبقيه سوى ما يحدثه مما هو قائم بنفسه في كل زمان فرد و تلك الشئون أحوال المخلوقين و هم المحال لوجودها فيهم فإنه فيهم يخلق تلك الشئون دائما فلا يصح بقاء الحال زمانين لأنه لو بقي زمانين لم يكن الحق في حق من بقي عليه الحال خلاقا و لا فقيرا إليه و كان يتصف بالغنى عن اللّٰه و هذا محال و ما يؤدي إلى المحال محال و هذا مثل قول القائلين بأن العرض لا يبقى زمانين و هو الصحيح و الأحوال أعراض تعرض للكائنات من اللّٰه يخلقها فيهم عبر عنها بالشأن الذي هو فيه دنيا و آخرة هذا أصل الأحوال الذي يرجع إليه في الإلهيات فإذا خلق اللّٰه الحال لم يكن له محل إلا الذي يخلقه فيه فيحل فيه زمان وجوده فلهذا اعتبره من اعتبره من الحلول و هو النزول في المحل و قد وجد ثم إنه ليس من حقيقته أن يبقى زمانين فلا بد أن ينعدم في الزمان الثاني من زمان وجوده لنفسه لا ينعدم بفاعل يفعل فيه العدم لأن العدم لا ينفعل لأنه ليس شيئا وجوديا و لا بانعدام شرط و لا بضد لما في ذلك كله من المحال فلا بد أن ينعدم لنفسه أي العدم له في الزمان الثاني من زمان وجوده حكم لازم و المحل لا بقاء له دونه أو مثله أو ضده فيفتقر في كل زمان إلى ربه في بقائه فيوجد له الأمثال أو الأضداد فإذا أوجد الأمثال يتخيل أن ذلك الأول هو على أصله باق و ليس كذلك و إذا كان الحق كل يوم في شأن : و كل شأن عن توجه إلهي و الحق قد عرفنا بنفسه أنه يتحول في الصور فلكل شأن يخلقه بصورة إلهية فلهذا ظهر العالم على صورة الحق و من هنا نقول إن الحق علم نفسه فعلم العالم فمثل هذا اعتبر من اعتبر الحال من التحول و الاستحالة فقال بعدم الدوام فلا يزال العالم مذ خلقه اللّٰه إلى غير نهاية في الآخرة و الوجود في أحوال تتوالى عليه اللّٰه خالقها دائما بتوجهات إرادية تصحبها كلمة الحضرة المعبر عنها بكن فلا تزال الإرادة متعلقة و هو المتوجه و لا تزال كن و لا يزال التكوين هكذا هو الأمر في نفسه حقا و خلقا و قد يطلقون الحال و يريدون به ظهور العبد بصفة الحق في التكوين و وجود الآثار عن همته و هو التشبه بالله المعبر عنه بالتخلق بالأسماء و هو الذي يريده أهل زماننا اليوم بالحال و نحن نقول به و لكن لا نقول بأثره لكن نقول إنه يكون العبد متمكنا منه بحيث لو شاء ظهوره لظهر به لكن الأدب يمنعه لكونه يريد أن يتحقق بعبوديته و يستتر بعبادته فلا ينكر عليه أمر بحيث إذا رىء في غاية الضعف ذكر اللّٰه عند رؤيته فذلك عندنا ولي اللّٰه فيكون في الكون مرحمة و هو «قول النبي صلى اللّٰه عليه و سلم في أولياء اللّٰه إنهم الذين إذا رأوا ذكر اللّٰه»



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