Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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فكلام صاحب هذا المقام كله نيابة و منا من يقول بنفسه في زعمه و ما هو كذلك في نفس الأمر فإن اللّٰه عند لسان كل قائل فكما أنه ليس في الوجود إلا اللّٰه كذلك ما ثم قائل و لا سامع إلا اللّٰه و كما قسمنا قولنا بين من يقول بالله و يقوله بنفسه كذلك سماعنا منا من يسمع بربه و هو «قوله كنت سمعه الذي يسمع به» و منا من يسمع بنفسه في زعمه و الأمر على خلافه فهذا هو السماع الإلهي و هو سار في جميع المسموعات و أما السماع الروحاني فمتعلقه صريف الأقلام الإلهية في لوح الوجود المحفوظ من التغيير و التبديل فالوجود كله رق منشور و العالم فيه كتاب مسطور فالأقلام تنطق و آذان العقول تسمع و الكلمات ترتقم فتشهد و عين شهودها عين الفهم فيها بغير زيادة و لا ينال هذا السماع إلا العقول التي ظهرت لمستوي و لما كان السماع أصله على التربيع و كان أصله عن ذات و نسبة و توجه و قول فظهر الوجود بالسماع الإلهي كذلك السماع الروحاني عن ذات و يد و قلم و صريف قلم فيكون الوجود للنفس الناطقة في سماع صريف هذه الأقلام في ألواح القلوب بالتقليب و التصريف و كذلك السماع الطبيعي مبناه على أربعة أمور محققة فإن الطبيعة مربعة معقولة من فاعلين و منفعلين فأظهرت الأركان الأربعة أيضا فظهرت النشأة الطبيعية على أربعة أخلاط و أربع قوى قامت عليها هذه النشأة و كل خلط منها يطلب بذاته من يحركه لبقائه و بقاء حكه فإن السكون عدم فأوجد في نفوس العلماء حين سمعوا صريف الأقلام ما ينبغي أن يحرك به هذه النشأة الطبيعية فأقاموا لها أربع نغمات لكل خلط من هذه الأخلاط نغمة في آلة مخصوصة و هي المسماة في الموسيقى و هو علم الألحان و الأوزان بالبم و الزير و المثنى و المثلث كل واحد من هذه يحرك خلطا من هذه الأخلاط ما بين حركة فرح و حركة بكاء و أنواع الحركات و هذا لها بما هي نشأة طبيعية لا بما هي روحانية فإن الحركة في النشأة الطبيعية و السماع الطبيعي لا يكون معه علم أصلا و إنما صاحبه يجد طربا في نفسه أو حزنا عند سماع هذه النغمات من هذه الآلات و من أصوات القوالين و لا يجد معها علما أصلا فإنه ليس هذا حظ السماع الطبيعي مع الحال الصحيح و الوجد الصحيح الذي يطلبه الطبع و هو سماع الناس اليوم و السماع الروحاني يكون معه علم و معرفة في غير مواد جملة واحدة و السماع الإلهي يكون معه علم و معرفة في مواد و في غير مواد عام التعلق يجده في السماع الطبيعي و الروحاني لكن بالسمع الإلهي الذي يخص الطبع و العقل خاصة و منهم من يعلم ذلك و منهم من لا يعلمه مع كونه يجده و لا يقدر على إنكار ما يجد فسماع الحق مطلق كما أن وجوده مطلق و تمييزه عسير و للنغمات في الكلام الإلهي و القول أصل تستند إليه و هو أقوى الأصول و لهذا لها القوة و التأثير في الطباع فلا يستطيع أحد أن يدفع عن نفسه عند ورود النغمة و تعلق السمع بها إذا صادفت محلها ذلك الطرب أو الأثر الذي يجده السامع في نفسه فسلطانها قوي و ذلك لقوة أصلها الذي تستند إليه فإن الأسماء الإلهية و إن كانت لعين واحدة فمعلوم عند أهل اللّٰه ما بينها من التفاوت و لما كان التفاوت معقولا فيها و علم ذلك بآثارها علمنا أن الحقائق الإلهية التي استندت إليها هذه النغمات أقوى من الذي استند إليه الكلام فإنا نسمع قارئا يقرأ أو منشدا ينشد شعرا فلا نجد في نفوسنا حركة لذلك بل ربما نتبرم من ذلك في أوقات لأنه جاء على غير الوزن الطبيعي فإذا سمعنا تلك الآية أو الشعر من صاحب نغمة و في حقها في الميزان أصابنا وجد و حركنا و وجدنا ما لم نكن نجد فلهذا فرقنا بين ما استندت إليه النغمات الطبيعية و بين ما استند إليه القول هذا ميزان المحسوس و أما ميزان العقل فينظر حكمة الترتيب الإلهي في العالم فإن كان من أهل السماع الإلهي فينظر ترتيب الأسماء الإلهية فيكون سماعه من هناك و إن كان من أهل السماع الروحاني فينظر ترتيب آثارها في العالم الأعلى و الأسفل فيجد في كل مسموع فإن المسموعات كلها نغم عنده فمنهم من تكون له حركة محسوسة و منهم من لا تكون له و أما الحركة الروحانية فلا بد منها و لله طائفة خرجت عن الحركات الروحانية إلى الحركات الإلهية و هو قول الجنيد ﴿وَ تَرَى الْجِبٰالَ تَحْسَبُهٰا جٰامِدَةً وَ هِيَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحٰابِ﴾ [النمل:88]



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