Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

Volume number (out of 37): [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 4415 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

أي تامة الخلقة و ليس إلا الذهب و غير تامة الخلقة و هي بقية المعادن فتتولاه في ذلك الوقت روحانية كوكب من الكواكب السيارة السبعة و هو ملك من ملائكة تلك السماء يجري مع ذلك الكوكب المسخر في سباحته لأن اللّٰه هو الذي وجهه إلى غاية يقصدها عن أمر خالقه إبقاء لعين ذلك الجوهر فيتولى صورة الحديد ذلك الملك الذي جواده هذا الكوكب السابح من السماء السابعة من هنا و صورة القزدير و غيره و كذلك كل صورة معدنية يتولاها ملك يكون جواده هذا الكوكب السابح في سمائه و فلكه الخاص به الذي وجهه فيه ربه تعالى فإذا جاء العارف بالتدبير نظر في الأمر الأهون عليه فإن كان الأهون عليه إزالة العلة من الجسد حتى يرده إلى المجرى الطبيعي المعتدل الذي انحرف عنه فهو أولى فإن الكوكب السابح يراه صاحب الرصد وقتا في المنزلة عينها و وقتا عادلا عنها منحرفا فوقها أو تحتها فيعمد العارف بالتدبير إلى السبب الذي رده حديدا أو ما كان و يعلم أنه ما غلب الجماعة إلا بما فيه من الكمية فنقص من الزائد و زاد في الناقص و هذا هو الطب و العامل به العالم هو الطبيب فيزيل عنه بهذا الفعل صورة الحديد مثلا أو ما كان عليه من الصور فإذا رده إلى الطريق أخذ يحفظ عليه تقويم الصحة و إقامته فيها فإنه قد يعافي من مرضه و هو ناقة فيخاف عليه فهو يعامله بتلطيف الأغذية و يحفظه من الأهوية و يسلك به على الصراط القويم إلى أن يكسو ذلك الجوهر صورة الذهب فإذا حصلت له خرج عن حكم الطبيب و عن علته فإنه بعد ذلك الكمال لا ينزل إلى درجة النقصان و لا يقبله و لو رامها الطبيب لم يتمكن له ذلك فإن القاضي ما عنده نص في هذه المسألة حتى يحكم فيها بما يراه و سبب ذلك على الحقيقة أن القاضي عادل و لا يحكم إلا على من خرج عن طريق الحق و هذا الذهب عليه فلا يقضى عليه بشيء لأنه لم يتوجه للخصم عليه حق فهذا سببه فمن لزم طريق الحق ارتفع عن درجة الحكم عليه و صارحا كما على الأشياء فهذه طريقة إزالة العلل و ما رأيت عليها أحدا يعرف ذلك و لا نبه عليه و لا أشار و لا تجده إلا في هذا الباب أو في كلامنا



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


Veuillez noter que certains contenus sont traduits de l'arabe de manière semi-automatique!