Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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﴿وَ لاٰ تَنْفَعُ الشَّفٰاعَةُ عِنْدَهُ إِلاّٰ لِمَنْ أَذِنَ لَهُ﴾ [ سبإ:23] و قد أذن لنا أن نشفع في هذا الميت بالصلاة عليه فقد تحققنا الإجابة بلا شك ثم يسلم بعد تكبيرة الشكر سلام انصراف عن الميت أي لقيت من ربك السلام و لهذا «شرع النبي صلى اللّٰه عليه و سلم أن يكفوا عن ذكر مساوي الموتى» فإن المصلي قد قال في آخر صلاته عليه السلام عليكم فأخبر عن نفسه أن الميت قد سلم منه فإن ذكره بمساءة بعد هذا فقد كذب نفسه في قوله السلام عليكم فإنه ما سلم منه من ذكره بسوء بعد موته فإن ذلك يكرهه الميت و يكرهه اللّٰه للحي فإن الحي يذكره به و لا ينتهي عن فعل مثله فيؤديه ذلك إلى أن يكون قليل الحياء من ربه

(وصل في فصل رفع الأيدي عند التكبير في الصلاة على الجنائز و التكييف)

[رفع الأيدى يؤذن بالافتقار]

و أما رفع الأيدي عند كل تكبيرة و التكتيف فإنه مختلف فيهما و لا شك أن رفع اليدين يؤذن بالافتقار في كل حال من أحوال التكبير يقول ما بأيدينا شيء هذه قد رفعناها إليك في كل حال ليس فيها شيء و لا تملك شيئا

[التكتيف شافع و الشافع سائل]

و أما التكتيف فإنه شافع و الشافع سائل و السؤال حال ذلة و افتقار فيما يسأل فيه سواء كان ذلك السؤال في حق نفسه أو في حق غيره فإن السائل في حق الغير هو نائب في سؤاله عن ذلك الغير فلا بد أن يقف موقف الذلة و الحاجة لما هو مفتقر إليه فيه و التكتيف صفة الأذلاء و صفته وضع اليد على الأخرى بالقبض على ظهر الكف و الرسغ و الساعد فيشبه أخذ العهد في الجمع بين اليدين يد المعاهد و المعاهد أي أخذت علينا العهد في أن ندعوك و أخذنا عليك العهد بكرمك في أن تجيبنا فقلت ﴿وَ إِذٰا سَأَلَكَ عِبٰادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدّٰاعِ إِذٰا دَعٰانِ﴾ [البقرة:186] و لم يقل دعاني في حق نفسه و لا في حق غيره

[الدعاء للميت و الشفاعة عند اللّٰه فيه]

ثم أذنت لنا في الدعاء للميت و الشفاعة عندك فيه فلم يبق إلا الإجابة فهي متحققة عند المؤمن و لهذا جعلنا التكبيرة الاخيرة شكرا و السلام سلام انصراف و تعريف بما يلقي الميت من السلام و السلامة عند اللّٰه و منا من الرحمة و الكف عند ذكر مساوية

(وصل في فصل القراءة في صلاة الجنازة)



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