Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

القاطع للمناجاة و الحائل بينك و بين المشاهدة هل يؤثر في الدار الآخرة عند الرؤية بحيث أن يكون كالفراق بين الحلبتين أو لا يؤثر و لا تتصل الرؤية و المشاهدة فإن كان القاطع حدثا و هو ما يؤثر في الايمان فإنه لا يكون ثمرة لما تقدم له قبل هذا الحدث من المناجاة المشروعة فهو بمنزلة الذي لا يبنى و إن كان القاطع رؤية سبب و استناد إليه فإنه يجني ثمرة ما تقدم له من المناجاة قبل طروء هذا القاطع السببي و هو بمنزلة الذي يبنى بلا شك

(وصل في فصل المصلي)

إلى سترة أو إلى غير سترة فيمر بين يديه شيء هل يقطع الصلاة عليه أو لا يقطع فمن قائل لا يقطع الصلاة شيء و من قائل يقطعها المرأة و الكلب و الحمار إذا مر بين يديه أو بينه و بين سترته و الذي أقول به إن المار مأثوم و أن المصلي مأمور بأن يحول بينه و بين المرور و يدفعه ما استطاع فإن لم يفعل و لم يدفعه فالمصلي مأثوم و الصلاة صحيحة بكل وجه و الحد الذي يلزمه دفعه عنه هو حد موضع جبهته في سجوده من الأرض فإذا حال بينه و بين موضع سجوده فذلك المأمور بأن يدفعه و يقاتله و ما زاد على ذلك فلا يلزم المصلي دفعه و لا قتاله و الإثم يتعلق بالمار في القدر الذي يسمى بين يديه عند العرب إذ لم يحد الشارع في ذلك شيئا

(الاعتبار في ذلك)

الحق قبلة العبد فمن مر بين اللّٰه و بين عبده بنفسه لا بربه فوباله يحور عليه و للمصلي الذي هو المناجي أن ينبهه و يرده عن رؤية نفسه في ذلك فإنه مأمور بالنصيحة لله و لرسوله و لعامة المسلمين و لأئمتهم و لكافة الناس أجمعين فإن تعين عليه موضع النصيحة و لم ينصح كان آثما و المناجي على حاله صحيح المناجاة على كل حال و إن كان مأثوما فإن كان المار خاطرا يخطر له في حال صلاته بينه و بين ربه فإن كان في صلاة صحيحة بقلبه فمن المحال أن يمر به خلاف ما هو به بحسب الآية التي يكون فيها أو الذكر و أما غير ذلك فلا يجد منفذا و أما إن كان ساهيا عن نفسه و مرت الخواطر فلا يخلو في أول العقد و الاستحضار إن كان حاضرا مع ربه فلا يبالي بما خطر له و صلاته صحيحة فإنه حاضر مع نفسه إنه مناج ربه فإن كان ممن يناجي ربه في كل شيء في حال صلاته كعمر بن الخطاب أو يرى أن كل شيء صادر عن الحق في حال مناجاته بينه و بين ربه كأبي بكر فصلاته في باطنه صحيحة و ذلك الصادر لا يخلو من أن يكون ذا إرادة أو لا يكون فإن لم يكن فلا شيء عليه و إن كان ذا إرادة فلا يخلو ما أن يكون مجبورا في مروره بين يديه في عين اختياره عنده أو لا يكون إلا مختارا فالمختار يأثم و المجبور ليس بإثم

(وصل في فصل النفخ في الصلاة)



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