Les révélations mecquoises: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و قال بعضهم ما رأيت أسهل علي من الورع كل ما حاك له في نفسي شيء تركته إلى أن جعل اللّٰه لهم علامات يعرفون بها الحلال من الحرام في المطاعم و غيرها إلى أن ارتقوا عن العلامات إلى خرق العوائد عندهم في الشيء المتورع فيه فيستعملونه فيظن من لا علم له بذلك أنه أتى حراما و ليس كذلك فاتسع عليهم ذلك الضيق و الحرج و قد ذقنا هذا من نفوسنا و زال عنهم ما كانوا يجدونه في نفوسهم من البحث و التفتيش عن ذلك و هذه العلامة و هذا الحال التي ارتقوا إليها لا تكون أبدا إلا من نفس الرحمن رحمهم بذلك الرحمن لما رآهم فيه من التعب و الضيق و الحرج و تهمة الناس في مكاسبهم و ما يؤديهم إليه هذا الفعل من سوء الظن بعباد اللّٰه فنفس الرحمن عنهم بما جعل لهم من العلامات في الشيء و في حق قوم بالمقام الذي ارتقوا إليه الذي ذكرناه فيأكلون طيبا و يستعملون طيبا فالطيبات للطيبين و الطيبون للطيبات و استراحوا إذ كانوا على بينة من ربهم في مطاعمهم و مشاربهم و أداهم التحقق بالورع إلى الزهد في الكسب إذ كان مبني اكتسابهم الورع ليأكلوا مما يعلمون أن ذلك حلال لهم استعماله ثم عملوا على ذلك الورع في المنطق من أجل الغيبة و الكلام فيما يخوض الإنسان فيه من الفضول فرأوا أن السبب الموجب لذلك مجالسة الناس و معاشرتهم و ربما قدروا على مسك نفوسهم عن الكلام بما لا ينبغي

[العزلة و الانقطاع عن الناس]

لكن بعضهم أو أكثرهم عجز أن يمنع الناس بحضوره عن الكلام بالفضول و ما لا يعنيهم فأداهم أيضا هذا الحرج إلى الزهد في الناس فآثروا العزلة و الانقطاع عن الناس باتخاذ الخلوات و غلق بابهم عن قصد الناس إليهم و آخرون بالسياحة في الجبال و الشعاب و السواحل و بطون الأودية فنفس اللّٰه عنهم من اسمه الرحمن بوجوه مختلفة من الأنس به أعطاهم ذلك نفس الرحمن فأسمعهم أذكار الأحجار و خرير المياه و هبوب الرياح و مناطق الطير و تسبيح كل أمة من المخلوقات و محادثتهم معه و سلامهم عليه فآنس بهم من وحشته و عاد في جماعة و خلق ما لهم كلام إلا في تسبيح أو تعظيم أو ذكر آلاء إلهية أو تعريف بما ينبغي و هو جليس لهم و يسمع جوارحه و كل جزء فيه يكلمه بما أنعم اللّٰه عليه به فتغمره النعم فيزيد في العبادة و منهم من ينفس عنه بالأنس بالوحوش رأينا ذلك فتغدو عليه و تروح مستأنسة به و تكلمه بما يزيده حرصا على عبادة ربه

[الروحانيون من الجان و مخالطتهم أهل العزلة]

و منهم من يجالسه الروحانيون من الجان و لكن هو دون الجماعة في الرتبة إذا لم يكن له حال سوى هذا لأنهم قريب من الأنس في الفضول و الكيس من الناس من يهرب منهم كما يهرب من الناس فإن مجالستهم رديئة جدا قليل أن تنتج خيرا لأن أصلهم نار و النار كثيرة الحركة و من كثرت حركته كان الفضول أسرع إليه في كل شيء فهم أشد فتنة على جليسهم من الناس فإنهم قد اجتمعوا مع الناس في كشف عورات الناس التي ينبغي للعاقل أن لا يطلع عليها غير أن الإنس لا تؤثر مجالسة الإنسان إياهم تكبرا و مجالسة الجن ليست كذلك فإنهم بالطبع يؤثرون في جليسهم التكبر على الناس و على كل عبد لله و كل عبد لله رأى لنفسه شفوفا على غيره تكبرا فإنه يمقته اللّٰه في نفسه من حيث لا يشعر و هذا من المكر الخفي و عين مقت اللّٰه إياه هو ما يجده من التكبر على من ليس له مثل هذا و يتخيل أنه في الحاصل و هو في الفائت ثم اعلم أن الجان هم أجهل العالم الطبيعي بالله و يتخيل جليسهم بما يخبرونه به من حوادث الأكوان و ما يجري في العالم مما يحصل لهم من استراق السمع من الملإ الأعلى فيظن جليسهم أن ذلك كرامة اللّٰه به و هيهات لما ظنوا و لهذا ما ترى أحدا قط جالسهم فحصل عنده منهم علم بالله جملة واحدة غاية الرجل الذي تعتني به أرواح الجن أن يمنحوه من علم خواص النبات و الأحجار و الأسماء و الحروف و هو علم السيمياء فلم يكتسب منهم إلا العلم الذي ذمته ألسنة الشرائع و من ادعى صحبتهم و هو صادق في دعواه فاسألوه عن مسألة في العلم الإلهي ما تجد عنده من ذلك ذوقا أصلا فرجال اللّٰه يفرون من صحبتهم أشد فرارا منهم من الناس فإنه لا بد أن تحصل صحبتهم في نفس من يصحبهم تكبرا على الغير بالطبع و ازدراء بمن ليس له في صحبتهم قدم و قد رأينا جماعة ممن صحبوهم حقيقة و ظهرت لهم براهين على صحة ما ادعوه من صحبتهم و كانوا أهل جد و اجتهاد و عبادة و لكن لم يكن عندهم من جهتهم شمة من العلم بالله و رأينا فيهم عزة و تكبرا فما زلنا بهم حتى حلنا بينهم و بين صحبتهم لإنصافهم و طلبهم الأنفس كما أيضا رأينا ضد ذلك منهم فما أفلح و لا يفلح من هذه صفته إذا كان صادقا و أما الكاذب فلا نشتغل به

[الملائكة نعم الجلساء هم أنوار و محض صفاء]



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