الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

يدعى صاحبها عبد الرفيق و هو أخو الصاحب في الدلالة و لما خبر ﷺ عند الموت ما قال و لا سمع منه إلا الرفيق الأعلى فإنه تعالى كان مرافقه في الدنيا و علم منه تعالى أنه يريد بطلوع الفجر الرجوع إلى عرشه من السماء الدنيا التي نزل إليها في ليل نشأته الطبيعية فلم يرد ﷺ مفارقة رفيقه فانتقل لانتقاله و رحل لرحلته و لذلك قال ﷺ الرفيق و لم يقل غير ذلك لأن الإنسان خلق في محل الحاجة و العجز فهو يطلب من يرتفق به فلما وجد الحق نعم الرفيق و علم إن الارتفاق به على الحقيقة هو الارتفاق الموجود في العالم و إن أضيف إلى غيره فلجهل الذي أضافه فطلب الرفيق الذي بيده جميع الإرفاق فلم يطلب أثرا بعد عين و هكذا حال كل من أحب لقاء اللّٰه إذا لم تكن له درجة مشاهدة الرفيق و هو في قوله تعالى ﴿وَ هُوَ مَعَكُمْ أَيْنَ مٰا كُنْتُمْ﴾ [الحديد:4] فهو رفيقنا تعالى في كل وجهة نكون فيها غير إنا حجبنا فسمي انفصالنا عن هذا الوجود الحسي بالموت لقاء اللّٰه و ما هو لقاء و إنما هو شهود الرفيق الذي أخذ اللّٰه بأبصارنا عنه فقال من أحب لقاء اللّٰه أحب اللّٰه لقاءه

فنلقاه بالكرامة *** و البشر و بالرضى

و بأهل و مرحب ضاق *** عن وسعه الفضاء

فلم يعرفه المحجوب رفيقا حتى لقيه فإذا لقيه عرفه و هو قوله ﴿وَ بَدٰا لَهُمْ مِنَ اللّٰهِ مٰا لَمْ يَكُونُوا يَحْتَسِبُونَ﴾ [الزمر:47] فاستحيوا منه المؤمنون لما عاملوه به من المخالفة لأوامره تعالى و خاف منه المجرمون فلقوه على كره فكره اللّٰه لقائهم و مع هذه الكراهة فلا بد من اللقاء للجزاء كان الجزاء ما كان و لما كان الأنس و الرحمة و أخواتهما في الرفيق و المرافقة لذلك اختصت البنوية باسم الرفيق فتقول فلان رفيق فلان لأنه يغضب لرفيقه و ينصره و لا يخذله و ينصر الحق و لا يخذله فإنه من شرط البنوة أنه لا يكذب فيعتضد بالنبوي الحق في إظهار الصدق و ليس ذلك لغير هذه الطائفة و إذا لم يكن على مكارم هذه الأخلاق خلع عنه قميص البنوة و هو قميص نقي سابغ فمن دنسه أو قلصه عاد ذلك عليه و خلع عنه قميصها فلا يلبسه إلا أهلها

«الباعث حضرة البعث»

حضرة البعث حضرة الإرسال *** فلها الصدق و هو من أحوالي

كلما قلت قد أتاني رسول *** منه يبغي دون الأنام سؤالي

تهت عجبا به و قلت أنيسي *** أنت و اللّٰه إن خطرت ببالي

إني بعثت إلى المحبوب في السحر *** بما أتيت به من صادق الخبر



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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