الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

كأنه في ظلام الليل إن نظرت *** عيناك صورته صبح و مصباح

[إن للحياء موطن الخاص]

يدعى صاحبها عبد الحي أو عبد المستحيي ورد في الخبر أن اللّٰه حيي لكن للحياء موطن خاص فإن اللّٰه قد قال في الموطن الذي لا حكم للحياء فيه ﴿إِنَّ اللّٰهَ لاٰ يَسْتَحْيِي أَنْ يَضْرِبَ مَثَلاً مٰا بَعُوضَةً﴾ [البقرة:26] أي لا يترك ضرب المثل بالأدنى و الأحقر عند الجاهل فإنه ما هو حقير عند اللّٰه و كيف يكون حقيرا من هو عين الدلالة على اللّٰه فيعظم الدليل بعظمة مدلوله ثم «إن رسول اللّٰه ﷺ نطق من هذه الحضرة بقوله الحياء من الايمان و الايمان نصف صبر و نصف شكر و اللّٰه هو الصبور الشكور» و من هذه الحضرة من اسمه المؤمن شكر عباده على ما أنعموا به على الأسماء الإلهية بقبولهم لآثارها فيهم و صبر على أذى من جهله من عباده فنسب إليه ما لا يليق به و نسبوا إليه عدوا بغير علم كما أخبرنا عنهم فصبر على ذلك و لا شخص أصبر على أذى من اللّٰه لاقتداره على الأخذ فهو المؤمن الكامل في إيمانه بكمال صبره و شكره و من أعجب شكره أنه شكر عباده على ما هو منه ثم إنه تعالى من حيائه إنه يؤتى بشيخ يوم القيامة فيسأله و يقرره على هناته و زلاته فينكرها كلها فيصدقه و يأمر به إلى الجنة فإذا قيل له سبحانه في ذلك يقول إني استحييت أن أكذب شيبته فأما تصديقه من كون الحياء من الايمان و هو المؤمن فإنه صدق من قبوله لما خلق اللّٰه فيه من المعاصي و الذنوب و كل ما خلق اللّٰه فيه لو لا قبوله ما نفذ الاقتدار فيه و أما «قوله ﷺ و هو الحياء لا يأتي إلا بخير و اللّٰه حيي فأتاه من حيائه بخير» و أي خير أعظم من أن يستر عليه و لم يفضحه و غفر له و تجاوز عنه و إن العبد إذا قامت به هذه الصفات الإلهية فمن هذه الحضرة تأتيه و منها يقبلها فإنه لكونه على الصورة الإلهية يقبل من كل حضرة إلهية ما تعطيه لأن لها وجها إلى الحق و وجها إلى العبد و كذلك كل حضرة تضاف إلى العبد مما يقول العلماء فيها تضاف إلى العبد بطريق الاستحقاق و الأصالة و إن كنا لا نقول بذلك فإن لكل حضرة منها أيضا وجهين وجها إلى الحق و وجها إلى العبد فانتظم الأمر بين اللّٰه و بين خلقه و اشتبه فظهر في ذلك الحق بصفة الخلق و ظهر الخلق بصفة الحق و وافق شن طبقة فضمه و اعتنقه و اللّٰه



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