الفتوحات المكية

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[ ما من موجود في العالم إلا و له وجه خاص إلى موجدة]

و اعلم أنه ما من موجود في العالم إلا و له وجه خاص إلى موجدة إذا كان من عالم الخلق و إن كان من عالم الأمر فما له سوى ذلك الوجه الخاص و إن اللّٰه يتجلى لكل موجود من ذلك الوجه الخاص فيعطيه من العلم به ما لا يعلمه منه إلا ذلك الموجود و سواء علم ذلك الموجود أو لم يعلمه أعني أن له وجها خاصا و أن له من اللّٰه علما من حيث ذلك الوجه و ما فضل أهل اللّٰه إلا بعلمهم بذلك الوجه ثم يتفاضل أهل اللّٰه في ذلك فمنهم من يعلم أن لله تجليا لذلك الموجود من هذا الوجه الخاص و منهم من لا يعلم ذلك و الذين يعلمون ذلك منهم من يعلم العلم الذي يحصل له من ذلك التجلي و منهم من لا يعلمه أعني على التعيين و ما أعني بالعلم إلا متعلق العلم هل هو كون أو هو اللّٰه من حيث أمر ما و العلم المتعلق بالله إما علم بالذات و هو سلب و تنزيه أو إثبات و تشبيه و إما علم باسم ما من الأسماء الإلهية من حيث ما سمي الحق به نفسه من كونه منعوتا بالقول و الكلام و إما علم باسم ما من أسماء الأسماء من حيث ما تقتضيها عبارات المحدثات و إما علم نسب إلهية و إما علم صفات معنوية و إما علم نعوت ثبوتية إضافية تطلب أحكاما متقابلة و إما علم ما ينبغي أن يطلق منه عليه و ما ينبغي أن لا يطلق و لكل علم أهل و أما ما يتعلق بالكون من العلم الإلهي الذي يعطيه اللّٰه من شاء من عباده من هذا الحضرة فهو إما علم يكون متعلقة نسبة العالم إلى اللّٰه و إما علم يكون متعلقه نسبة اللّٰه إلى العالم و إما علم بارتفاع النسبة بين العالم و الذات و إثباتها بين العالم و الأسماء و إما علم بإثبات النسبة بين العالم و الذات و هو علم القائلين بالعلة و المعلول و إما علم إثبات النسبة شرط لا علة و إما علم يتعلق بالصورة التي خلق اللّٰه العالم عليها كله و إما علم بالصورة التي خلق الإنسان عليها و إما علم بالبسائط و إما علم بالمركبات و إما علم بالتركيب و إما علم بالتحليل و إما علم بالأعيان الحاملة مركبة كانت أو بسائط و إما بالأعيان المحمولة و إما علم بإلهيات و إما علم بالأوضاع و إما علم بالمقادير و إما علم بالأوقات و إما علم بالاستقرارات و إما علم بالانفعالات و إما علم بالعين المؤثرة اسم فاعل المؤثرة فيها اسم مفعول و أنواع الآثار بالتوجهات و القصد أو بالمباشرة هذا كله مما يكون للعالم به أو ببعضه من هذه الحضرة العلمية فمن دخل هذه الحضرة ذوقا فقد حاز كل علم و من دخلها بالفكر فإنه ينال منها على قدر ما هو فيه و من هذه الحضرة يحيط بعض الخلق بعلم ما لا يتناهى من أعيان أشخاص نوع نوع من الممكنات على حد ما يعلم في العامة تضاعف العدد إلى ما لا يتناهى و لا يقدر أحد على إنكاره من نفسه إنه يعلم ذلك و لا يخطئ فيه ثم لتعلم إن مسمى العلم ليس سوى تعلق خاص من عين تسمى عالما لهذا التعلق و هو نسبة تحدث لهذه الذات من المعلوم فالعلم متأخر عن المعلوم لأنه تابع له هذا تحقيقه فحضرة العلم على التحقيق هي المعلومات و هو بين العالم و المعلوم و ليس للعلم عند المحقق أثر في المعلوم أصلا لأنه متأخر عنه فإنك تعلم المحال محالا و لا أثر لك فيه من حيث علمك به و لا لعلمك فيه أثر و المحال لنفسه أعطاك العلم به أنه محال فمن هنا تعلم أن العلم لا أثر له في المعلوم بخلاف ما يتوهمه علماء أصحاب النظر فإيجاد أعيان الممكنات عن القول الإلهي شرعا و كشفا و عن القدرة الإلهية عقلا و شرعا لا عن العلم فيظهر الممكن في عينه فيتعلق به علم الذات العالمة بأنه ظاهر كما تعلق به أنه غير ظاهر بذلك العلم فظهور المعلوم و عدم ظهوره أعني وجوده أعطى العلم فهو حضرة المعلوم ينوع العلم من العالم بما هو عليه في ذاته أعني المعلوم هذا في كل موصوف بالعلم فالصفات المعنوية كلها على الحقيقة نسب غير أنه ثم نسبة تتقدم كالقول بالإيجاد على الموجود و نسبة تتأخر كالعلم و المعلوم فإذا فهمت ما ذكرته لك في هذه الحضرة علمت الأمر العلمي على ما هو عليه ﴿وَ اللّٰهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَ هُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ﴾ [الأحزاب:4]

«حضرة القبض و هي للاسم القابض»



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