الفتوحات المكية

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فإذا ظهر عين ذلك المكون أي شيء كان تشوفت إليه مرتبته لأن مزاجه يطلبها و أعني المرتبة الأولى فيكتسب الاستعداد لأمور علية أو دنية بحسب ما يعطيه ذلك الاستعداد المكتسب فيظهر في العالم بصورة ذلك فإذا نظر فيه الأجنبي و أعني بالأجنبي الذي لا علم له بالحقائق و نظر إلى استعداده فأعطاه نظره أنه نازل عن رتبته أو رتبته فوق ذلك أعني الرتبة التي ظهر فيها و الأمر في نفسه ليس كما ظهر لصاحب هذا النظر فإن الاستعداد المؤثر إنما هو في الخلق و هو استعداد ذاتي و أما الاستعداد العرضي فلا حكم له بل الاستعداد العرضي رتبة أظهرها الاستعداد الذاتي و غاب هذا القدر من العلم عن أكثر الخلق مثال ذلك أن يروا شخصا ساكتا قد تصور العلوم و أحكمها و أعطى من المراتب أخسها ممن لا ينبغي لمن جمع هذه الفضائل و العلوم أن يكون غايته تلك الرتبة فيقال إنه قد حط هذا الرجل عن رتبته و ما أنصف في حقه و ما عندهم خبر بأن رتبته إنما هي عين تلك الفضائل التي جمعها و تلك العلوم التي أحكمها و من جملتها هذه المرتبة الخسيسة التي ولاة السلطان عليها إن كان من الولاة و إن لم يكن من الولاة و لا نال شيئا مع هذا الفضل من المناصب قيل فيه إنه محروم و ما هو محروم و إنما الموطن اقتضى ذلك و هو أن الدنيا اقتضت أن يعامل فيها الجليل بالجلال في وقت و في وقت يعامل الجليل بالصغار و في وقت يعامل الصغير بالصغار و في وقت يعامل الصغير بالجلال بخلاف موطن الآخرة فإن العظيم بها يعامل بالعظمة و الحقير بها يعامل بالحقارة و لو نظر الناظر لرأى في الدنيا من يقول في اللّٰه ما لا يليق به تعالى و من يقول فيه ما يليق به من التنزيه و الثناء و أعظم من الحق فلا يكون هذا العبد فمن علم المواطن علم الأمور كيف تجري في العالم و إلى اللّٰه ﴿يُرْجَعُ الْأَمْرُ كُلُّهُ﴾ [هود:123]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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