الفتوحات المكية

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و لهذا جاءت الرسل و التعريف الإلهي بما تحيله العقول فتضطر إلى التأويل في بعضها لتقبله و تضطر إلى التسليم و العجز في أمور لا تقبل التأويل أصلا و غايته أن يقول له وجه لا يعلمه إلا اللّٰه لا تبلغه عقولنا و هذا كله تأنيس للنفس لا علم حتى لا ترد شيئا مما جاءت به النبوة هذا حال المؤمن العاقل و أما غير المؤمن فلا يقبل شيئا من ذلك و قد وردت أخبار كثيرة مما تحيلها العقول منها في الجناب العالي و منها في الحقائق و انقلاب الأعيان فأما التي في الجناب العالي فما وصف الحق به نفسه في كتابه و على لسان رسله مما يجب الايمان به و لا يقبله العقل بدليله على ظاهره إلا إن تأوله بتأويل بعيد فإيمانه إنما هو بتأويله لا بالخبر و لم يكن له كشف إلهي كما كان للنبي فيعرف مراد الحق في ذلك الخبر فوصف نفسه سبحانه بالظرفية الزمانية و المكانية و وصفه بذلك رسوله صلى اللّٰه عليه و سلم و جميع الرسل و كلهم على لسان واحد في ذلك لأنهم يتكلمون عن إل واحد

[إله العقل و إله الإيمان و الكشف]

و العقلاء أصحاب الأفكار اختلفت مقالاتهم في اللّٰه تعالى على قدر نظرهم فالإله الذي يعبد بالعقل مجردا عن الايمان كأنه بل هو إله موضوع بحسب ما أعطاه نظر ذلك العقل فاختلفت حقيقته بالنظر إلى كل عقل و تقابلت العقول و كل طائفة من أهل العقول تجهل الأخرى بالله و إن كانوا من النظار الإسلاميين المتأولين فكل طائفة تكفر الأخرى و الرسل صلوات اللّٰه عليهم من آدم عليه السّلام إلى محمد صلى اللّٰه عليه و سلم ما نقل عنهم اختلاف فيما ينسبونه إلى اللّٰه من النعوت بل كلهم على لسان واحد في ذلك و الكتب التي جاءوا بها كلها تنطق في حق اللّٰه بلسان واحد ما اختلف منهم اثنان يصدق بعضهم بعضا مع طول الأزمان و عدم الاجتماع و ما بينهم من الفرق المنازعين لهم من العقلاء ما اختل نظامهم و كذلك المؤمنون بهم على بصيرة المسلمون المسلمون الذين لم يدخلوا نفوسهم في تأويل فهم أحد رجلين إما رجل آمن و سلم و جعل علم ذلك إليه إلى أن مات و هو المقلد و إما رجل عمل بما علم من فروع الأحكام و اعتقد الايمان بما جاءت به الرسل و الكتب فكشف اللّٰه عن بصيرته و صيره ذا بصيرة في شأنه كما فعل بنبيه و رسوله صلى اللّٰه عليه و سلم و أهل عنايته فكاشف و أبصر و دعا إلى اللّٰه عزَّ وجلَّ على بصيرة كما قال اللّٰه تعالى في حق نبيه صلى اللّٰه عليه و سلم مخبرا له ﴿أَدْعُوا إِلَى اللّٰهِ عَلىٰ بَصِيرَةٍ أَنَا وَ مَنِ اتَّبَعَنِي﴾



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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