الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 8492 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

من نفسه تقلب أحواله فيكون على بصيرة في ذلك من اللّٰه فهذه أيام اللّٰه التي ينبغي أن يذكر العبد بها إلى أمثال ذلك من أيام اللّٰه و هي أيام النعم و أيام الانتقام التي أخذ اللّٰه فيها المقرون الماضية و اعلم أن البلايا أكثر من النعم في الدنيا فإنه ما من نعمة ينعمها اللّٰه على عباده تكون خالصة من البلاء فإن اللّٰه يطالبه بالقيام بحقها من الشكر عليها و إضافتها إلى من يستحقها بالإيجاد و أن يصرفها في الموطن الذي أمره الحق أن يصرفها فيه فمن كان شهوده في النعم هذا الشهود متى يتفرغ للالتذاذ بها و كذلك في الرزايا هي في نفسها مصائب و بلايا و يتضمنها من التكليف ما يتضمنه النعم من طلب الصبر عليها و رجوعه إلى الحق في رفعها عنه و تلقيها بالرضى أو الصبر الذي هو حبس النفس عن الشكوى بالله إلى غير اللّٰه و هذا غاية الجهل بالله لأنك تشكو بالقوي إلى الضعيف لما تجد في حال الشكوى من الراحة مع كونك تشتكي إلى غير مشتكى لأنك تعلم أنه ما بيده شيء و لا يقدر على رفع ما نزل بك إلا من أنزله و قد علمت أن الدار دار بلاء لا يخلص فيها النعيم عن البلاء وقتا واحدا و أقله طلب الشكر من المنعم بها عليها و أي تكليف أشق منه على النفس و لذلك قال تعالى ﴿وَ قَلِيلٌ مِنْ عِبٰادِيَ الشَّكُورُ﴾ [ سبإ:13] لجهلهم بالنعم إنها نعم يجب الشكر عليها يؤيد ما قلناه قوله تعالى ﴿إِنَّ فِي ذٰلِكَ لَآيٰاتٍ لِكُلِّ صَبّٰارٍ شَكُورٍ﴾ [ابراهيم:5] في حق راكب البحر إذا اشتد الريح عليه و برد فيما فيها من النعمة يطلب منه الشكر عليها و بما فيها من الشدة و الخوف يطلب منه الصبر فافهم و تدبر كلام اللّٰه تغنم و ما أنزله اللّٰه إلا تذكرة للبيب كما قال ﴿لِيَدَّبَّرُوا آيٰاتِهِ وَ لِيَتَذَكَّرَ أُولُوا الْأَلْبٰابِ﴾ [ص:29]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!