الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

مع حصول النجاسة فيه بلا شك و لكن لما كانت النجاسة متميزة عن الماء بقي الماء طاهرا على أصله إلا أنه يعسر إزالة النجاسة منه فما أباح الشارع من استعمال الماء الذي فيه النجاسة استعملناه و ما منع من ذلك امتنعنا منه لأمر الشرع مع عقلنا أن النجاسة في الماء و عقلنا أن الماء طهور في ذاته لا ينجسه شيء فما منعنا الشارع من استعمال الماء الذي فيه النجاسة لكونه نجسا أو تنجس و إنما منعنا من استعمال الشيء النجس لكوننا لا نقدر على فصل أجزائه من أجزاء الماء الطاهر فبين النجاسة و الماء برزخ مانع لا يلتقيان لأجله و لو التقيا لتنجس الماء فاعلم ذلك أ لا ترى الصور التي في سوق الجنة كلها برازخ تأتي أهل الجنة إلى هذا السوق من أجل هذه الصور و هي التي تتقلب فيها أعيان أهل الجنة فإذا دخلوا هذا السوق فمن اشتهى صورة دخل فيها و انصرف بها إلى أهله كما ينصرف بالحاجة يشتريها من السوق فقد يرى جماعة صورة واحدة من صور ذلك السوق فيشتهيها كل واحد من تلك الجماعة فعين شهوته فيها التبس بها و دخل فيها و حازها فيحوزها كل واحد من تلك الجماعة و من لا يشتهيها بعينه واقف ينظر إلى كل واحد من تلك الجماعة قد دخل في تلك الصورة و انصرف بها إلى أهله و الصورة كما هي في السوق ما خرجت منه فلا يعلم حقيقة هذا الأمر الذي نص عليه الشرع و وجب به الايمان إلا من علم نشأة الآخرة و حقيقة البرزخ و تجلى الحق في صور متعددة يتحول فيهن من صورة إلى صورة و العين واحدة فيشهد بصرا تحوله في صور و يعلم عقلا أنها ما تحولت قط فكل قوة أدركت بحسب ما أعطتها ذاتها و الحق في نفسه صدق العقل في حكمه و صدق البصر في حكمه ثم له علم بنفسه ما هو عين ما حكم به العقل عليه و لا هو عين ما حكم به شهود البصر عليه و لا هو غير هذين بل هو عين ما حكما به و هو ما علمه الحق من نفسه مما لم يعلمه هذان الحاكمان فسبحان العليم القدير قدر و قضى و حكم و أمضى



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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