الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و إنما كان زوجا من أجل ما يطلبه من النكاح إذ لا يكون إلا بين الزوجين فعين عرسه هو ما تبرزه من الأزهار و المخلقة في النبات هو ما سلم من الجوائح و غير المخلقة ما نزلت به الجائحة ﴿وَ اللّٰهُ عَلىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ﴾ [البقرة:284] فهذا قد ذكرنا طرفا من الخواتم و الأعراس مجملا من غير تفصيل لكن حصرنا الأمهات في ذلك و أما الأسرار الأعجمية فإنما سمينها أعجمية لأن العربية من الأسرار هي التي يدركها عين الفهم صورا كالآيات المحكمات في الكتب المنزلة و الأسرار الأعجمية ما تدرك بالتعريف لا بالتأويل و هي كالآيات المتشابهات في الكتب المنزلة فلا يعلم تأويلها إلا اللّٰه أو من أعلمه اللّٰه : ليس للفكر في العلم بها دخول و لا له فيها قدم و ما يتبع استخراج السر فيها إلا الذي ذكره اللّٰه تعالى و هو الذي في قلبه زيغ : أي ميل عن الحق باتباعه ما قد ذكر اللّٰه فيه أنه لا يعلم تأويله إلا اللّٰه فمن أراد أن يعلم ذلك فلا يخض في تلك الأسرار و ليتعمل في الطريق الموصلة إلى اللّٰه و هو العمل بما شرع اللّٰه له بالتقوى فإنه قال تعالى إنه ينتج لصاحبه علم الفرقان فإذا عمل به تولى اللّٰه تعليمه تلك الأسرار الأعجمية فإذا أنالها إياه صارت في حقه عربية فيعلم ما أراد اللّٰه بها و يزول عنه فيها حكم التشابه الذي كانت توصف به قبل العلم بها لأن اللّٰه جلاها متشابهة لها طرفان في الشبه فلا يدري صاحب النظر ما أراد منزلها بها في ذلك التشابه فإنه لا بد من تخليصه إلى أحد الطرفين من وجه خاص و إن جمعت بين الطرفين فلكل طرف منهما ما ليس للآخر من ذلك المخلوق أو من ذلك المنزل إن كان من صور كلام اللّٰه فالمنزل كقوله تعالى ﴿اَلرَّحْمٰنُ عَلَى الْعَرْشِ اسْتَوىٰ﴾ [ طه:5]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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