الفتوحات المكية

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و ما ورث على الحقيقة إلا الوجود الذي يتجلى فيه لمن ظهر من خلقه الذي اختلعت فيه صور الممكنات و أعراضها لأن الوارث لا يكون مع وجود الموروث عنه و بقائه و إنما يكون بعد انتقاله و عدمه من هذا الموطن و هو اتصافه بالعدم و ليس ذلك إلا للصور و الأعراض فهو وارث على الدوام و الاختلاع واقع على الدوام و القبول حاصل على الدوام و النكاح لازم على الدوام و هذا معنى الديمومة المنسوبة إلى الحق فهو تعالى يعمل مع كونه لم يزل موجدا للعالم و لم يزل العالم محدثا فالعالم له حكم الحدوث في عين القدم فلا يعقل له طرف ينتهي إليه لأنه من ذاته لم يزل تحت حكم الترجيح الإلهي له إما بالعدم أو بالوجود و إذا تقرر هذا في النسبة الإلهية فلنذكر حكم النسبة الروحانية في هذه المسألة و ذلك أن الوجود الذي ذكرناه في النسبة الإلهية هو الوجه الخاص الذي لكل ممكن من اللّٰه سواء كان هناك سبب وضعي أو لم يكن فالله الإيجاد على كل حال و بكل وجه علوا و سفلا و أما النكاح الروحاني فحضرته الطبيعة و هي الأهل الأصلي في النكاح الإلهي فإذا ولدت في النكاح الأول صورة من الصور كانت تلك الصورة أهلا لهذا الروح الكل فانكحه الحق إياها فبنى بها فلما واقعها ظهر عن ذلك الوقاع ولد و هو الروح الجزئي فحييت به تلك الصورة و صار هذا الولد يقوم بها و يدبرها و يسعى عليها و يسافر و يقتحم الأخطار ليكتسب ما يجود به عليها حسا و معنى أي من الأرزاق المحسوسة و المعنوية و العرس الذي يكون لهذا النكاح الروحاني إنما تقيمه القوي التي لا ظهور لها إلا في هذه الصورة الطبيعية بوجود هذا النكاح فيقع لها الالتذاذ و الفرح بما يحصل لها من الأثر بوجود هذا البناء و أما النكاح الطبيعي فهو ما تطلبه هذه الأرواح الجزئية المدبرة لهذه الصور من اجتماع الصورتين الطبيعية بالالتحام



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