الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و ما أنا مدع في ذاك من نبأ من الإله و لكن جود إحسان

إن النبوة بيت بيننا غلق *** و بينه موثق بقفل إيمان

و إنما قلنا ذلك لئلا يتوهم متوهم إني و أمثالي و ادعى نبوة لا و اللّٰه ما بقي إلا ميراث و سلوك على مدرجة محمد رسول اللّٰه ﷺ خاصة و إن كان للناس عامة و لنا و لأمثالنا خاصة من النبوة ما أبقى اللّٰه علينا منها مثل المبشرات و مكارم الأخلاق و مثل حفظ القرآن إذا استظهره الإنسان فإن هذا و أمثاله من أجزاء النبوة المورثة و لذلك كان أول إنسان أنشأه اللّٰه و هو آدم نبيا من مشى على مدرجته بعد ذلك فهو وارث لا بد من ذلك بهذه النشأة الترابية و أما في المقام فآدم و من دونه إنما هو وارث محمد ﷺ لأنه كان نبيا و آدم بين الماء و الطين لم يكن بعد موجودا فالنبوة لمحمد ﷺ و لا آدم و الصورة الآدمية الطبيعية الإنسانية لآدم و لا صورة لمحمد ﷺ و على آدم و على جميع النبيين فآدم أبو الأجسام الإنسانية و محمد ﷺ أبو الورثة من آدم إلى خاتم الأمر من الورثة فكل شرع ظهر و كل علم أنما هو ميراث محمدي في كل زمان و رسول و نبي من آدم إلى يوم القيامة و لهذا أوتي جوامع الكلم و منها علم اللّٰه آدم الأسماء كلها فظهر حكم الكل في الصورة الآدمية و الصورة المحمدية فهي في آدم أسماء و في محمد ﷺ كلم و كلمات اللّٰه سبحانه لا تنفد و موجوداته من حيث جوهرها لا تبعد و إن ذهبت صورها و تبدلت أحكامها فالعين لا تذهب و لا تتبدل بل وقع التبديل في العالم لما هو الحق عليه من التحول في الصور فلو لم يظهر التبدل في العالم لم يكمل العالم فلم تبق حقيقة إلهية إلا و للعالم استناد إليها على أن تحقيق الأمر عند أهل الكشف إن عين تبدل العالم هو عين التحول الإلهي في الصور فعين كونه فيما شاء تجلى عين كونه فيما شاء ركبك ف‌ ﴿مٰا تَشٰاؤُنَ إِلاّٰ أَنْ يَشٰاءَ اللّٰهُ﴾ [الانسان:30] فتلك على الحقيقة مشيئة اللّٰه لا مشيئتك و أنت تشاء بها فالحياة لعين الجوهر و الموت لتبدل الصور كل ذلك



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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