الفتوحات المكية

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و لما خلق اللّٰه تعالى العالم و اقتضت ذات العالم أن يستحيل بعضه لبعضه بما ركبه اللّٰه عليه من الحقائق و الاستعداد لقبول الاستحالة طلب بذاته العوارض الإمكانية التي تراها في العالم فمن العالم من له قصد في ذلك الطلب و هو تعيين عارض خاص كقائم يطلب القعود ممن يعقل و منهم من يطلبه من غير قصد كالشجرة تطلب السقي من أجل الثمرة التي خلقت لها و طلبها لذلك ذاتي على مقدار معلوم إن زاد على ذلك كان حكمه حكم نقصانه في الهلاك و ما الماء بحكمها فلا بد من حافظ يحفظ عليها القدر المعلوم و ليس إلا خالقها و هذه الأمور العوارض التي تعرض لجوهر العالم منها ما يقال فيه صلاح و منه ما يقال فيه فساد و لكن في نفس الأمر لا يصح أن يعرض للعالم فساد لا صلاح فيه فإنه يكون خلاف ما أريد له وجوده و أما صلاح لا فساد فيه فهو الواقع المراد لصانع العالم فإنه لذلك خلق العالم و أما الأحوال فذاتية للمعاني فإنها أحكامها و ليس لها وجود و لا هي معدومة كالأحمر لمن قامت به الحمرة و هذا حكم لا يتصف بالخلق لأنه معقول لا عين له في الوجود العيني بل المعاني كلها التي أوجبت أحكامها لمن اتصف بها نسب عدمية لا عين لها في الوجود و لها الحكم و الحال و لا عين لحكمها و لا لحالها في الوجود فصار الحاكم و المحكوم به في الحقيقة أمورا عدمية مع أنها معقولة فعلى الحقيقة لا أثر لموجود في موجود و إنما الأثر للمعدوم في الموجود و في المعدوم لأن الأثر للنسب كله و ليست النسب إلا أمورا عدمية يظهر ذلك بالبديهة في أحكام المراتب كمرتبة السلطنة و مرتبة السوقية في النوع الإنساني مثلا فيحكم السلطان في السوقة بما تريد رتبة السلطانة و ليس للسلطنة وجود عيني و إذا كان الحكم للمراتب فالأعيان التي من حقيقتها أن لا تكون على صورة طبيعية جسمية في نفسها إذا ظهرت لمن ظهرت له في صورة طبيعية جسدية في عالم التمثيل كالملك يتمثل



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